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(२५) रूपस्थादिक जान ॥ ताहुमें पिंडस्थ ध्यान पुन, ध्याताकू परधान॥जग०॥२॥ ते पिंडस्थ ध्यान किम करीयें, ताको एम विधान ॥ रेचक पूरक कुंजक शांतिक, कर सुखमनघरआन।।जगाश प्रान समान उदान व्यानकू, सम्यक् प्रदडं अपान ॥ सहज सुनाव सुरंग सन्नामें,
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