Book Title: Badmer Aur Mumbai Hastlikhit Granth Suchipatra
Author(s): Seva Mandir Ravti Jodhpur
Publisher: Seva Mandir Ravti Jodhpur

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Page 11
________________ क्रम. 1. नाम 2 प्राकृतनाम उपलब्ध ग्रंथाग्र ग्रंथकार वर्गीकरण प्रमाण टिप्पणी पृष्ठ सं. 3 8 9 x 4,252 1700 सुधर्मावाचना 113 सङग्रहणी 114 समवायाङ्ग 115 समुत्थानश्रुत 116 सारावली 117 सिद्धप्राभूत 118 सूत्रकृताङ्ग 119 सूर्यप्रज्ञप्ति 120 संलेखना 121 संस्तारक 122 स्थानाङ्ग . संगहणी समवायो समुट्ठाणसुयं सारावली सिद्धपाहुड सूयगडं (सूदयदं) सूरपण्णत्ती संलेहणा संथारग ठाणं 145 गा. 116 150 गा. 120 2100 दो स्कंध सुधर्मावाचना 2300 xxx विधिमया (कौनसी ?) अंग(4)का. सर्वमान्य का. नं.व्य.पा. प्र.c 10 प्र B 10 अंग(2)का. सर्वमान्य 2,252 उपाङ्ग(6)का. नं.पा.प. दिगम्बर मेंडष्टिवाद परिकर्म 254 उत्का . नं.पा. . प्र. A 10 30,262 अंग (3)का. सर्वमान्य 4,252 155 गा. 122 . 3700 सुधर्मावाचना संकेत:-का.=कालिक; उत्का.=उत्कालिक; प्र.=प्रकीर्णक; नं.=नंदीसूत्र; पा.=पाक्षिक सूत्र; व्य. व्यवहार सूत्र; ठा.ठाणाङ्गः घ.=घवलाटीका; जो.=जोगनंदी। विकल्पः-ओपनियुक्ति या पिण्डनियुक्ति; पंचकल्प या जीतकल्प; जंबू द्वीप या जंबू स्वामी प्रकरण तथा दस प्रकीर्णक मान्य हैं किन्तु ऐसी तीन भिन्न-भिन्न बोड (सेट्स) हैं जिन्हें क्रमशः A1 से A10, B1 से B10 और C1 से C10 बताया गया है। टीप :- सूर्य प्राप्ति व चन्द्रप्रज्ञप्ति के उपलब्ध पाठ एक सरीखे ही है। सची:- में 37 आगम दिगम्बर सम्मत हैं परन्तु वे वर्तमान में षडावश्यक, षटखंडागम और कषाय पाहड को ही उपलब्ध मानते हैं शेष का विच्छेद कहते हैं। प्राप्य प्रागम मूल रूप में कहीं न कहीं से मुद्रित हो चुके हैं और तदनुसार उनका परिमाण बता दिया गया है। __हो सकता है नाम भेद का पता पड़ने से कुछ संख्या कुछ कम हो जाय । नंदी व अनुयोगद्वार को चू = च्लिका भी कहते हैं। दृष्टव्यः-जन ग्रंथावली- श्व कान्फ्रेस मुम्बई का प्रकाशन ।

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