Book Title: Atmaprabodh
Author(s): Jinlabhsuri
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रबोधः। आत्म- प्रदिपति यावदंतरकरणदलिकं सकलमपि दीयते, अंतर्मुहूर्तेन च कालेन सकल | दलिकदयः, ततस्तस्मिन्ननिवृत्तिकरणे अवसिते नदीर्णे च मिथ्यात्वे अनुन्नवतः दीणे अनुदीर्णे च, परिणामविशेषेण निरुद्योदये सति ऊपरदेशकल्पं मिथ्यात्वविवरमा| साद्य संग्रामे सुनटेंडो वैरिजयादत्यंताहादमिव परमानंदमयमपौलिकमोपशमिकं सम्यक्त्वमधिगति. तदा च ग्रीष्मतप्तस्य गोशीर्षचंदनरसेनेव तेन सम्यक्त्वेन ततस्यात्मनि अत्यद्भुतशैतव्यं प्रानवति, ततस्तत्र स्थितः सन् सत्तायां वर्तमानं मि. थ्यात्वं विशोध्य पुंजत्रयरूपेणावश्यं व्यवस्थापयति. यथा हि कश्चिन्मदनकौघवानीषधिविशेषेण विशोषयति, ते च शोध्यमानाः केचिनुध्यंति केचिदर्धशुधा एव ज. वंति, केचित्तेष्वति सर्वयैव न शुध्यंति, एवं जीवोऽप्यध्यवसायविशेषतो जिनवचनरुचिप्रतिबंधकदुष्टरसोबेदकरणेन मिथ्यात्वं शोधयति, तदपि शोन्यमानं शुधमर्धशुष्मशुद्धं च त्रिधा जायते, तत्स्थापना यथा-000 तत्र शुधः पुंजः सर्वधर्म For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 572