Book Title: Atmanand Prakash Pustak 091 Ank 07
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २) [ आत्मानंद प्रकाश प्रात: १०-३० बजे मुमुक्षभाई श्री दलपतमाई उपकरण के विविध चढावे बोले गए जिनका एवं उम्मेदपुर (राजस्थान) निवासी कुमारी लाभ शा. घेवरच दजी हिम्मतमलजी. शा. पुष्पा जैन का दीक्षा समारोह सम्पन हुआ । निहालचंदजी पन्नाजी. शा. ओटरमलजी श्री दलपतभाइ का नूतन नाम मुनि श्री सांकल चदजी. शा. जवानमलज़ी खीमाजी. शा. दिव्योदयविजयजी रखा गया और कुमारी मोहनलालजी फौजमलजी एवं श्रीमती पुष्पा. पुष्पाबहन का नाम साध्वीश्री पुष्पचूलाश्रीजी बहन रजनीकान्त ने लिया। रखा गया । दीक्षा के निमित्त दीक्षार्थियों के oad 000 गिरिराज पर गुरु विजयानंद की प्रतिमा की पूनर्प्रतिष्ठा परमार क्षत्रियोद्धारक चारित्र चूडामणि आत्मानंद जैन महासभा (उत्तरी भारत) के जैन दिवाकर, वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य अर्थ सहयोग से सेठ श्री आनंदजी कल्याणजी श्रीमद विजय इन्द्रदिन्नसूरीश्वरजी महाराज पेढी की ओर से इसका सम्पूर्ण रुपसे जीर्णोएवं कार्यदक्ष आचार्य श्रीमद् विजय जगच्चन्द्र द्धार किया गया । दो लाख रुपयों के लागत सूरीश्वरजी महाराज आदि ठाणा की पावन से निर्मित यह देहरी जैसलमेरी लाल पथ्थर निश्रा में दि. १२-५-९४ को प्रातः ८-५० और संगमरमर से बनी है । इसका नवीनीबजे गिरिराज पर दादा आदिनाथ की टुक करण शिल्पकला युक्त अत्यन्त आकर्षक हुआ में विश्ववंद्य विभूति, महान ज्योतिर्घर, पजाब हैं । देशोद्धारक, नवयुग निर्माता, न्यायाम्मो निधि इसकी प्रतिष्ठा के लिए चढावे बोले गए आचार्य श्रीमद विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज थे उनमें सर्व प्रथम पाटला पूजन का लाभ की प्रतिमा की भव्य प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। श्री कुमारपाल जैन दिल्लीवालों ने लिया । _पहले इसकी प्रतिष्ठा पजाब केसरी, युग- पांच अभिषेक का लाभ श्री खूबीलालजी वीर, आचार्य श्रीमद विजय वल्लभ सूरीश्वरजी राठौड सादडीवालों ने लिया । प्रतिष्ठा कराने महाराज ने करवाई थी । वह जीर्ण होजाने का लाभ श्री लालच दजी मोहनलालजी से पूज्य श्री विजयानंदसूरिजी महाराज की सादडीबालों ने लिया । प्रतिष्ठा का लाभ स्वर्गारोहण शताब्दी के उपलक्ष्य में वर्तमान लेने वाले श्री मोहनलालजी जो सादडी में गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय इन्द्र दिन्न लाडू के नाम से जाने जाते हैं और जो श्री सूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्र गुरु परंपरा के परम For Private And Personal Use Only

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