Book Title: Atmanand Prakash Pustak 091 Ank 07
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनावरण और माल्यार्पण का लाभ सुरेन्द्रकुमार जैन जंडियालावालों ने दिल्दी ने लिया । ६ ) आचार्य श्रीमद विजय जगच्चन्द्र सूरीश्वरजी महाराज अपने शिष्य परिवार के साथ एक मंचपर बिराजमान थे । बायी ओर साध्वी मंडल विराजित था । गुरुदेव के सम्मुख १०८ श्रेयांस कुमार अपने परिवार के साथ आसन ग्रहण किए हुए थे । श्रमणी मंडल के समक्ष महिलाएं उपस्थित थी । दायी और समाज के गणमान्य गुरुभक्त गण पैठे हुए थे । शेष सभी जगहयत्र तत्र सर्वत्र दूर-दूर स आए गुरूभक्त पारणा समारोह के इस कार्यक्रम को निहार रहे थे । इस विशाल और ऐतिहासिक सभा को कार्यक्रम के प्रारंभ में इस समारोह के संबोधित करते हुए कार्यदक्ष आचार्य श्रीमद लिए लिशेष रूप से तैयार किए गए पंजाब विजय जगच्चन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने कहा देशोद्धारक, महान ज्योतिर्धर नवयुग निर्माता कि आज पूज्य गुरुदेव के संकल्प की पूर्णाहूति न्यायाम्मो निधि आचाय श्रीमद विजयानंद हो रही है । उनका संकल्प था कि मुझ े सूरीश्वरजी महाराज के चित्र का यदि पालीताणा में रहने का अवसर प्राप्त वासक्षेप पूजा दीप प्रज्वलन आदि के । चढावे हुआ तो मैं वर्षीय तप करुंगा और उसका बोले गये । अनावरण पारणा भी इसी पावन भूमि पर करूंगा । गुरुदेव का दृढ संकल्प और दृढ निश्चय हिमालय की तरह अडिग होता है । उन की कठोर तपश्चर्या और कठिन साधना की कोई बराबर नहीं कर सकता । पालीताणाकी पुण्य भूमि पर रहकर पूज्य गुरुदेव ने अपनी इकहत्तर वर्ष की अवस्था में अनेक आराधना साधना सम्पन्न की, वर्षीय तप जैसी कठोर तपश्चर्या एवं एक करोड मंत्र का जाप किया। उनके जैसे महान दिव्यात्मा ज्योतिपुंज गुरूदेव के वर्षीय तप का पारणा कराने का लाभ जिन १०८ श्रेयांस कुमारों ने लिया है । वे महान भाग्यशाली हैं । यह लाभ लेकर उन्होंने श्री हाल दीप प्रज्वलन अर्थात दीप-पूजा का लाभ श्री घीसूलालजी बदामिया सादडीवालों ने लिया । वासक्षेप पूजा का लाभ श्री राजकुमार जैन, प्रदीप पब्लिकेशन्स, जालंधरवालों ने लिया । मुनि श्री अरुण विजयजीने अक्षय तृतीया का महत्व बताते हुये अपने वक्तव्य में कहा कि इस वर्षीय तप के प्रणेता प्रथम तीर्थंकर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ आत्मानंद प्रकाश भगवान ऋषभदेवजी थे। एक बैल को छिका बांधने का उपदेश देकर उन्होंने कठोर कर्म का बंध किया, परिणामतः उन्हे एक वर्षं तक निर्जल और निराहार रहना पडा । उन्होंने हस्तिनापुर में श्रेयांसकुमार से जो अपने प्रपौत्र थे ईक्ष रस का निर्दोष रस ग्रहण करके पारणा किया था । तब से आज तक वर्षीय तप के तपस्वी भगवान आदिनाथ की तरह इक्षरस ग्रहण कर अपने वर्षीय तप का पारणा करते है। For Private And Personal Use Only

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