Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 2
________________ प्रस्तुति ढाई हजार वर्ष पहले उद्गीर्ण महावीर की वाणी। उसका एक छोटा सा संकलन। नाम है आचार (आयारो) कितनी दूरी। कहां वह अंतर्दृष्टि और अफ्रज्ञान से सत्य की खोज करने वाला युग और कहां वैज्ञानिक यंत्रों से सत्य को खोजने बाला युग? कितना जटिल है दोनों में सामंजस्य खोजने का प्रयत्न। महावीर का आचार आत्म-प्रधान या अध्यात्म-प्रधान था इसलिए वैज्ञानिक युग में वह अप्रासंगिक नहीं बना। यदि वह क्रियाकाण्ड प्रधान होता तो उसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाती। पर्यावरण विज्ञान अथवा सृष्टि संतुलन विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है। आचारांग को उसका प्रतिनिधि ग्रंथ माना जा सकता है। इसमें अहिंसा के कुछ विशिष्ट सूत्र प्रतिपादित हैं- वनस्पति और मनुष्य की तुलना, छोटे जीवों के अपलाप करने का अर्थ अपने अस्तित्व को नकारना आदि आदि। प्रस्तुत पुस्तक में इन सूत्रों पर एक विमर्श प्रस्तुत किया गया है। ढाई हजार वर्ष पहले प्रतिपादित आचार पुराना नहीं हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह वर्तमान की समस्याओं के संदर्भ में लिखा हुआ ग्रन्थ है। मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि मुझे आचारांग की गहराई में निमज्जन करने का अवसर मिला। www.jainelibrary.org

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