Book Title: Ashtsahastri Part 1 Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan View full book textPage 8
________________ उपप्लववादी तत्ववादीयों को दोष दे रहे हैं अब तत्वोपप्लववादी आस्तिक्यवादियों के प्रमाण तत्व को षित करने की चेष्टा करता है निर्दोष कारण जन्यत्व हेतु का खंडन तत्वोपप्लववाद बाधारहितत्व हेतु का खंडन बाधा की अनुत्पत्ति पदार्थ के ज्ञान के अनंतर ही ज्ञान की प्रमाणता को बतलाती है या हमेशा एक देश में स्थित मनुष्य के ज्ञान में बाधा की अनुत्पत्ति प्रमाणता का हेतु है या सर्वत्र किसी को बाधा का उत्पन्न न होना ज्ञान में प्रमाणता का हेतु है या सभी को नैयायिक प्रवृत्ति की सामर्थ्य से ज्ञान की प्रमाणता मानते हैं उनका खंडन प्रवृत्ति शब्द का क्या अर्थ है ? इस प्रकार से तत्वोपप्लववादी नैयायिक से प्रश्न करता है सौगत अविसंवादित्व होने से ज्ञान की प्रमाणता मानता है उसका खण्डन अभ्यास दशा में अविसंवाद ज्ञान की प्रमाणता स्वतः सिद्ध है इस प्रकार से बौद्ध मानता है उसका निराकरण तत्वोपप्लववाद का खण्डन अब जैनाचार्य तत्वोपप्लववाद का खंडन करके अपने मत में मान्य ज्ञान की प्रमाणता को सिद्ध करते हैं प्रमाण की प्रमाणता अभ्यास दशा में स्वतः एवं अनभ्यस्त दशा परसे है ऐसी मान्यता''''' कथंचित् नित्यानित्यात्मक आत्मा में अभ्यास-अनभ्यास दोनों ही संभव हैं अभ्यास और अनभ्यास का लक्षण तत्वोपप्लववादी संशय को करके प्रमाण का प्रलय करना चाहता है उसका निराकरण उपप्लववादी कुछ भी तत्व का निर्णय न करके पर के तत्वों का उपप्लव या पर के तत्व में संदेह कैसे कर सकता है ? अब जैनाचार्य उपप्लववादी के मत का ही उपप्लव कर रहे हैं। तत्वोपप्लववादी के खंडन का सारांश तीर्थच्छेद संप्रदाय वालों का खण्डन सर्वज्ञ सामान्य की सिद्धि में विसंवाद करने वाले मीमांसक, चार्वाक और तत्वोपप्लववादियों.... Jain Education International For Private & Personal Use Only पृष्ठ नं० १६४ १६६ १६६ २०४ २०५ २०६ २०७ २०६ २११ २१५ २१६ २१६ २२० २२१ २२१ २२३ २२५ २२६ २२८ २३० www.jainelibrary.orgPage Navigation
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