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पृष्ठ नं. भाट्ट शब्द से उसके व्यापार को भिन्न और अभिन्न दोनों रूप मानता है उस पर ......... भाट्ट कहता है कि आप जैनों के द्वारा ज्ञान भी अपने व्यापार से भिन्न है या अभिन्न या ....... १५१ भाट्ट के द्वारा दिये गये दोषों का जैनाचार्य निराकरण करते हैं ।
१५३ शब्द भावना का निराकरण करके अब यहां से आचार्य अर्थभावना का निराकरण करते हैं १५५ भाट्ट ने करोति क्रिया को सामान्य मान कर उसे ही वेदवाक्य का अर्थ माना है उस पर... १५६ निष्क्रिय वस्तु में भी भवति क्रिया का अर्थ देखा जाता है अतः वह क्रियास्वभाव नहीं है ऐसी ... १५७ करोति क्रिया का अर्थ सामान्य और नित्य है ऐसा भाट्ट के द्वारा कहने पर जैनाचार्य उसका निराकरण करते हैं करोति क्रिया एक है ऐसा भाट्ट कहता है उसका परिहार करोति सामान्य निरंश है ऐसा भाट्ट का कहना है उसका जैनाचार्य परिहार करते हैं वह सामान्य सर्वगत है ऐसा कहने पर जैनाचार्य दूषण दिखलाते हैं
१६१ भावनावाद के खंडन का सारांश वेद की अप्रमाणता जैनाचार्य वेद को अपौरूषेय एवं प्रमाण मानने का खंडन करते हैं
१७३ कोई भी वेद वाक्य स्वयं अपने अर्थ का प्रतिपादन नहीं करते हैं । अतः वेद की प्रमाणता सिद्ध नहीं होती है
१७८ वेद की प्रमाणता के खंडन का सारांश चार्वाक मत खंडन चार्वाक सर्वज्ञ के अभाव को सिद्ध करना चाहता है उसका निराकरण चार्वाक कहता है कि हमारे बृहस्पति का प्रत्यक्ष स्व और पृथ्वी आदि चतुष्टय को बतलाता है अतः"
१८५ चार्वाक कहता है कि हम लोगों के द्वारा मान्य अनुमान को लेकर उससे सर्वज्ञ को और प्रत्यक्ष के १८८ चार्वाक इंद्रिय प्रत्यक्ष से सभी जगह सर्वज्ञ का अभाव कैसे करेगा? इस पर विचार किया जाता है १८६ चार्वाक मत के खण्डन का सारांश
१६१ शून्यवाद तत्त्वोपप्लववादी का खंडन
१६२ तत्त्वोपप्लववादी जैनादिकों के द्वारा मान्य प्रमाण को लेकर उन्हीं के तत्वों का .... १६४
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