Book Title: Ashtpahud Gatha
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ पुरिसो विजो ससुत्तोण विणांसइ सो गओ वि संसारे। सच्चेदण पच्चक्खं णासदि तं सो अदिस्समाणो वि ।।४।। सुत्तत्थं जिणभणियं जीवाजीवादिबहुविहं अत्थं । हेयाहेयं च तहा जो जाणइ सो हु सद्दिट्ठी ।।५।। जं सुत्तं जिणउत्तं ववहारो तह य जाण परमत्थो। तं जाणिऊण जोई लहइ सुहं खवइ मलपुंजं ।।६।। सुत्तत्थपयविणट्ठो मिच्छादिट्ठी हु सो मुणेयव्वो। खेडे वि ण कायव्वं पाणिप्पत्तं सचेलस्स ।।७।। हरिहरतुल्लो वि णरो सग्गं गच्छेइ एइ भवकोडी। तह वि ण पावइ सिद्धिं संसारत्थो पुणो भणिदो ।।८।। उक्किट्ठसीहचरियं बहुपरियम्मो य गरुयभारो य । जो विहरइ सच्छंदं पावं गच्छदि होदि मिच्छतं ।।९।। णिच्चेलपाणिपत्तं उवइ8 परमजिणवरिंदेहिं । एक्को वि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ।।१०।। जो संजमेसु सहिओ आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि। सो होइ वंदणीओ ससुरासुरमाणुसे लोए।।११।। जे बावीसपरीसह सहंति सत्तीसएहिं संजुत्ता। ते होंति वंदणीया कम्मक्खयणिज्जरासाहू ॥१२॥ अवसेसा जे लिंगी दंसणणाणेण सम्म संजुत्ता। चेलेण य परिगहिया ते भणिया इच्छणिजा य ।।१३।। इच्छायारमहत्थं सुत्तठिओ जो हु छंडए कम्मं । ठाणे ट्ठियसम्मत्तं परलोयसुहंकरो होदि ।।१४।। अह पुण अप्पा णिच्छदिधम्माई करेइ णिरवसेसाई। तह वि ण पावदि सिद्धिं संसारत्थो पुणो भणिदो ।।१५।। एएण कारणेण य तं अप्पा सद्दहेह तिविहेण । जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ।।१६।। वालग्गकोडिमेत्तं परिगहगहणं ण होइ साहूणं । भुंजेइ पाणिपत्ते दिण्णण्णं इक्कठाणम्मि ।।१७। (4)

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