Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 2
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth प्राचीन तीर्थ थे, परन्तु वर्तमान समय में इनमें से अधिकांश विलुप्त हो चुके हैं। कुछ कल्याणक भूमियों में आज भी छोटे-बड़े जिन मन्दिर बने हुए हैं, और यात्रिक लोग दर्शनार्थ जाते भी हैं। परन्तु इनका पुरातन महत्त्व आज नहीं रहा। इन तीर्थों को 'कल्याणक भूमि' कहते हैं। (ग) उक्त तीर्थों के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी स्थान जैन तीर्थों के रूप में प्रसिद्ध हुए थे जिनमें से कुछ तो आज नाम शेष हो चुके हैं, और कुछ विद्यमान भी हैं। इनकी संक्षिप्त नाम सूचना यह है – (१) प्रभास पाटन - चन्द्रप्रभ, (२) स्तम्भ तीर्थ - स्तम्भन पार्श्वनाथ, (३) भृगुकच्छ अश्वावबोध शकुनिका विहार - मुनिसुव्रत, (४) सूरपार्क (नालासोपारा), (५) शंखपुर- शंखेश्वर पार्श्वनाथ, (६) चारूप - पार्श्वनाथ, (७) तारंगाहिल -अजितनाथ, (८) अर्बुदगिरि (माउण्ट आबू), (९) सत्यपुरीय-महावीर, (१०) स्वर्णगिरि - महावीर, (११) करहेटक-पार्श्वनाथ, (१२) विदिशा (भिलसा), (१३) नासिक्य-चन्द्रप्रभ, (१४) अन्तरिक्ष-पार्श्वनाथ, (१५) कुल्पाक-आदिनाथ, (१६) खण्डगिरि (भुवनेश्वर), (१७) श्रवण बेलगोला इत्यादि अनेक जैन प्राचीन तीर्थ प्रसिद्ध हैं। इनमें जो विद्यमान हैं, उनमें कुछ तो मौलिक हैं, तथा कतिपय प्राचीन तीर्थों के स्थानापन्न नवनिर्मित जिनचैत्यों के रूप में अवस्थित हैं। तीसरी श्रेणी के जैनतीर्थों को हम पौराणिक तीर्थ कहते हैं। इनका प्राचीन जैन साहित्य में वर्णन न होने पर भी कल्पों, जैन चरित्रग्रन्थों तथा प्राचीन स्तुति, स्तोत्रों में इनकी महिमा गायी गई है। उक्त तीन वर्गों में से इस लेख में हम प्रथम वर्ग के सूत्रोक्त तीर्थों का ही संक्षेप में निरूपण करेंगे। * सूत्रोक्त तीर्थ : आचारांग नियुक्ति की निम्नलिखित गाथाओं में प्राचीन जैनतीर्थों का नाम निर्देश मिलता है। दसण नाण चरिते तववेरग्गे य होई उ पसत्या। जा य तहा ता य तहा सक्सणं बुच्छं सलक्खणओ।।३२९ ।। तित्थगराण भगवओ पवयण पावयणि अइसइड्ढीणं। अभिगमण नमण दरिसण कित्तण सूंपअणा थुणणा॥३३० ।। जम्माभिसेय निक्खमण चरण नाणुप्पया य निव्वाणे। दिय लोअभवण मंदर नंदीसर भोम नगरेसं ।।३३१ ।। अट्ठावमुग्जिंते गयग्गपयए य धम्मचक्के य। पास रहावत्तंग चमरूप्पायं च वंदामि ॥३३२।। अर्थात् दर्शन, सम्यक्त्व-ज्ञान, चारित्र, तप, वैराग्य, विनय-विषयक भावनाएँ जिन कारणों से शुद्ध बनती हैं, उनको स्वलक्षणों के साथ कहूँगा ।।३२९ ।। तीर्थंकर भगवन्तों के, उनके प्रवचन के, प्रवचन-प्रचारक आचार्यों के, केवल, मनःपर्यव, अवधिज्ञान, वैक्रयादि अतिशय लब्धिधारी मुनियों के सन्मुख जाने, नमस्कार करने, उनका दर्शन करने, उनके गुणों का Prachin Jain Tirth ॐ 138

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