Book Title: Arhat Parshva and Dharnendra Nexus
Author(s): M A Dhaky
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 77
________________ Arbat Pārsva with Dharanendra in Hymnic Literature 59 जनः प्रौढज्योति:पटलपरिपेवी स्फुटतमानुभावाद्यस्यासौ त्वमसि गुरुहेमन्तविभवः ॥ १५॥ - श्रीजीरापल्ली पार्श्वनाथस्तवनम् The glory of the Pārsvanātha of Carūpa has been sung by Ratnasekhara Sūri (c. 2nd-3rd quarter of the 15th cent. A.D.), one other famous disciple of Somasundara Suri, in his Carupa-mandana-Parsvanātha-stavana. Therein, at least six verses are as pertinent as are good instances of the evocative description of Pārśva with Dharanendra:47 श्रीचारूपपुरप्रधानवसुधालङ्कारचूडामणिप्रायं स्फारफणामणिद्युतिभरैराभासिताशामुखम् । कल्पक्षोगिरुहातिशैशववयः पत्रालिवित्रासकृत्कायच्चायमहं स्तवोमि मुदितः श्रीपार्श्वविश्वेश्वरम् ॥ १॥ फणाग्रजाग्रन्मणिराजिराजमानेन्द्रनीलामलनीलकायः ।। सत्पुष्पभृत् पत्रलहेमपुष्पमहीरुहौपम्यमशिश्रियस्त्वम् ॥ ८॥ विभिद्य माद्यदुरपोहमोहमहान्धकारं प्रकटानि कुर्युः । सप्तापि तत्त्वानि विभो ! फणाग्रजाग्रत्तमास्ते मणिदीप्रदीपाः ॥ ९॥ स्फुरन्मणिस्फारफणान् दधान अपि प्रदस्तिव देव ! सर्पाः । हर्ष प्रवर्षन्ति जनय द्दष्टाः स्पृष्टाश्च सङ्गो हि सतां शमाय ॥ १५॥ श्रिताः फणास्त्वां मणिराजिभाजौ रेजुः कृतार्थीकृतभव्यसार्थ ! । अतुल्यवल्लयः कुसुमाभिरामाः कल्पद्रुमं नन्वधिरूढवत्यः ॥ १६ ॥ अतुल्यकल्याणमहानिधानं लभ्यं लसदभाग्यभरोदयेन।। प्रभो ! भजन्ते भुजगा भवन्तं युक्तं मणीमण्डितमौलिमध्याः ॥ १७॥ स्फारस्फूर्जत्फणानामनणुमणिगणोद्योतविद्योतिताशाचक्र चारूपनामप्रवरपुरमहीमण्डनं पार्श्वनाथम् । यः स्तौत्येवं तमालद्रुमदलपटलस्फर्द्धमानामलाङ्गज्योतिर्जालं स शर्माण्यनुभवति भवाम्भोधिपारस्थितात्मा ॥ १८ ॥ - श्रीचारूपमंडनपार्श्वनाथस्तवनम् The same Sūri's Tribhāṣā-Pārsva-Jina-stava also has a fine verse:48 फणिगुरुफणमालालम्बिचूडामहीयोमणिगणकिरणालीसङ्गरगावगाढम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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