Book Title: Appa so Paramapa Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 7
________________ ११ खण्ड ४ : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म-चिन्तन अत्यन्त गद्गद् होते हुए वे कहने लगे ... "भाई तम्हें पैसे जमा कराने की क्या आवश्यकता थी? तुम्हारे पिताजी स्वयं बीस वर्ष पहले तुम्हारे नाम एक करोड़ रुपये बैंक में जमा करा गये थे, जो अब ब्याज सहित तीन करोड़ हो गये होंगे। मरते समय यह बात वे मुझे बता गये थे। यह बात सुनकर वह एकदम उत्तेजित हो गया। थोड़ा-सा विश्वास उत्पन्न होते ही उसमें करोड़पतियों के लक्षण उभरने लगे। वह एकदम गर्म होते हुए बोला-“यदि यह बात सत्य है तो आपने अभी तक हमें क्यों नहीं बताया ?' वे समझाते हुए कहने लगे-"उत्तेजित क्यों होते हो ? अब तो बता दिया। पीछे की जाने दो, अब आगे की सोचो।" "पीछे की क्यों जाने दो ? हमारे करोड़ों रुपये बैंक में पड़े रहे और हम दो रोटियों के लिये मुहताज हो गये। हम रिवशा चलाते रहे और आप देखते रहे। यह कोई साधारण बात नहीं है, जो ऐसे ही छोड़ दी जावे, आपको इसका जवाब देना ही होगा।" "तुम्हारे पिताजी मना कर गये थे।" "आखिर क्यों ?" "इसलिए कि बीस वर्ष पहले तुम्हें रुपये तो मिल नहीं सकते थे। पता चलने पर तम रिक्शा भी न चला पाते और भूखों मर जाते।" "पर उन्होंने ऐसा किया ही क्यों ?" "इसलिए कि नाबालिगी की अवस्था में कहीं तुम यह सम्पत्ति बर्बाद न कर दो और जीवन भर के लिए कंगाल हो जाओ। समझदार हो जाने पर तुम्हें ब्याज सहित तीन करोड़ रुपये मिल जावें और तुम आराम में रह सको। तुम्हारे पिताजी ने यह सब तुम्हारे हित में ही किया है । अतः उत्तेजना में समय बर्बाद मत करो । आगे की सोचो।" इस प्रकार सम्पत्ति सम्बन्धी सच्ची जानकारी और उस पर पूरा विश्वास जागृत हो जाने पर उस रिक्शेवाले युवक का मानस एकदम बदल जाता है, दरिद्रता के साथ का एकत्व टूट जाता है एवं 'मैं करोड़पति हूँ' ऐसा गौरव का भाव जागृत हो जाता है, आजीविका की चिन्ता न मालूम कहाँ चली जाती है, चेहरे पर सम्पन्नता का भाव स्पष्ट झलकने लगता है । इसी प्रकार शास्त्रों के पठन, प्रवचनों के श्रवण और अनेक युक्तियों के अवलम्बन से ज्ञान में बात स्पष्ट हो जाने पर भी अज्ञानीजनों को इस प्रकार का श्रद्धान उदित नहीं होता कि ज्ञान का घनपिण्ड, आनन्द का रसकन्द, शक्तियों का संग्रहालय, अनन्त गुणों का गोदाम भगवान आत्मा मैं स्वयं ही हूँ। यही कारण है कि श्रद्धान के अभाव में उक्त ज्ञान का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। काललब्धि आने पर किसी आसन्नभव्य जीव को परमभाग्योदय से किसी अत्मानुभवी ज्ञानी धर्मात्मा का सहज समागम प्राप्त होता है और वह ज्ञानी धर्मात्मा उसे अत्यन्त वात्सल्यभाव से समझाता है कि हे आत्मन् ! तू स्वयं भगवान है, तू अपनी शक्तियों को पहचान, पर्याय की पामरता का विचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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