Book Title: Appa so Paramapa Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 1
________________ अप्पा सो प र म पा ( आत्मा ही परमात्मा है) - डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल (प्रसिद्ध विद्वान एवं ओजस्वी वक्ता ) ( टोडरमल स्मारक भवन ए-४, बापू नगर, जयपुर ३०२०१५ ) जैनदर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कहता है कि सभी आत्मा स्वयं परमात्मा हैं । स्वभाव से तो सभी परमात्मा हैं ही, यदि अपने को जाने, पहचाने और अपने में ही जम जायँ, रम जायँ तो प्रगटरूप से पर्याय में भी परमात्मा बन सकते हैं । जब यह कहा जाता है तो लोगों के हृदय में एक प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है। जब 'सभी परमात्मा हैं, तो परमात्मा बन सकते हैं - इसका क्या अर्थ है ? और यदि 'परमात्मा बन सकते हैं - यह बात सही है तो फिर 'परमात्मा हैं' - इसका कोई अर्थ नहीं रह सकता है, क्योंकि बन सकना और होनादोनों एक साथ संभव नहीं हैं । Jain Education International भाई, इसमें असंभव तो कुछ भी नहीं है, पर ऊपर से देखने पर भगवान होने और हो सकने में कुछ विरोधाभास अवश्य प्रतीत होता है, किन्तु गहराई से विचार करने पर सब बात एकदम स्पष्ट हो जाती है । एक सेठ था और था उसका पाँच वर्ष का इकलौता बेटा । बस दो ही प्राणी थे । जब सेठ का अन्तिम समय आ गया तो उसे चिन्ता हुई कि यह छोटा-सा बालक इतनी विशाल सम्पत्ति को कैसे संभालेगा ? अतः उसने लगभग सभी सम्पत्ति बेचकर एक करोड़ रुपये इकट्ठे किये और अपने बालक के नाम पर बैंक में बीस वर्ष के लिए सावधि जमायोजना (फिक्स्ड डिपाजिट ) के अन्तर्गत जमा करा दिये । सेठ ने इस रहस्य को गुप्त ही रखा, यहाँ तक कि अपने पुत्र को भी नहीं बताया, मात्र एक अत्यन्त घनिष्ठ मित्र को इस अनुरोध के साथ बताया कि वह उसके पुत्र को यह बात तब तक न बताये, जब तक कि वह पच्चीस वर्ष का न हो जावे । ( ५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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