Book Title: Appa so Paramapa Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 6
________________ अप्पा सो परमप्पा : डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल इस प्रकार कहकर वह अपना और अपने साथियों का मनोरंजन करता है, एक प्रकार से स्वयं अपनी हँसी उड़ाता है। इसी प्रकार शास्त्रों में से पढ़-पढ़कर हम स्वयं अपने साथियों को भी सुनाते हैं। कहते हैं'देखो, हम सभी स्वयं भगवान हैं, दीन-हीन मनुष्य नहीं।' इस प्रकार की आध्यात्मिक चर्चाओं द्वारा हम स्वयं का और समाज का मनोरंजन तो करते हैं, पर सम्यश्रद्धान के अभाव में भगवान होने का सही लाभ प्राप्त नहीं होता, आत्मानुभूति नहीं होती, सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती, आकुलता समाप्त नहीं होती। ___ इस प्रकार अज्ञानीजनों की आध्यात्मिक चर्चा भी आत्मानुभूति के बिना, सम्यग्ज्ञान के बिना, सम्यक्श्रद्धान के बिना बौद्धिक व्यायाम बनकर रह जाती है। समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो जाने के उपरान्त भी जब कोई व्यक्ति पैसे लेने बैंक में नहीं आया तो बैंकवालों ने रेडियो स्टेशन से घोषणा कराई। रेडियो स्टेशन को भारत में आकाशवाणी कहते है। अतः आकाशवाणी हुई कि अमुक व्यक्ति के इतने रुपये बैंक में जमा हैं, वह एक माह के भीतर ले जावे, अन्यथा लावारिस समझकर सरकारी खजाने में जमा करा दिये जावेंगे। आकाशवाणी की उस घोषणा को रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने भी सुना, अपने साथियों को भी सुनाई, पर विश्वास के अभाव में कोई लाभ नहीं हुआ। इसी प्रकार अनेक प्रवक्ताओं से इस बात को सुनकर भी कि हम सभी स्वयं भगवान हैं, विश्वास के अभाव में बात वहीं की वहीं रही । जीवन भर जिनवाणी सुनकर भी, पढ़कर भी, आध्यात्मिक चर्चायें करके भी आत्मानुभूति से अछूते रह गये। समाचार-पत्रों में प्रकाशित एवं आकाशवाणी से प्रसारित उक्त समाचार की ओर जब स्वर्गीय सेठजी के उन अभिन्न मित्र का ध्यान गया, जिन्हें उन्होंने मरते समय उक्त रहस्य की जानकारी दी थी, तो वे तत्काल उस युवक के पास पहुँचे और बोले "बेटा ! तुम रिक्शा क्यों चलाते हो ?" उसने उत्तर दिया-"यदि रिक्शा न चलायें तो खायेंगे क्या ?" उन्होंने समझाते हुए कहा-"भाई, [तुम तो करोड़पति हो, तुम्हारे तो करोड़ों रुपये बैंक में जमा हैं।" अत्यन्त गमगीन होते हुए युवक कहने लगा "चाचाजी, आपसे ऐसी आशा नहीं थी, सारी दुनिया तो हमारा मजाक उड़ा ही रही है, पर आप तो बुजुर्ग हैं, मेरे पिता के बराबर हैं, आप भी...।" वह अपनी बात समाप्त ही न कर पाया था कि उसके माथे पर हाथ फेरते हुए अत्यन्त स्नेह से वे कहने लगे-- "नहीं भाई, मैं तेरी मजाक नहीं उड़ा रहा हूँ। तू सचमुच ही करोड़पति है। जो नाम समाचार-पत्रों में छप रहा है, वह तेरा ही नाम है।" __अत्यन्त विनयपूर्वक वह बोला-“ऐसी बात कहकर आप मेरे चित्त को व्यर्थ ही अशान्त न करें। मैं मेहनत-मजदूरी करके दो रोटियाँ पैदा करता हूँ और आराम से जिन्दगी बसर कर रहा है। मेरी महत्वाकांक्षा को जगाकर आप मेरे चित्त को क्यों उद्वेलित कर रहे हैं। मैंने तो कभी कोई रुपये बैंक में जमा कराये ही नहीं। अतः मेरे रुपये बैंक में जमा कैसे हो सकते हैं ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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