Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ निवेदन 'संशोधन' प्रत्येनो अणगमो मे रूढिजड मानसनी जरीपुराणी विशेषता छे. संशोधन विषे प्रवर्तती अणसमज आनुं कारण छे. संशोधन मे सुधारकयुगनी विकृति छे, अथवा सुधारको तरफथी परम्परा उपर थयेटु आक्रमण छे; संशोधन द्वारा आपणां शास्त्रोनी अने धर्मनी वातोने खोटी ठरावीने आपणने धर्म तथा संस्कृतिथी भ्रष्ट करवानी ओक षड्यन्त्र जेवी योजना छे; संशोधनना नामे अवी वातो फेलाववामां आवे के तेथी लोको श्रद्धाभ्रष्ट थाय अने धर्मथी विमुख थई जाय; आ प्रकारनी, साची के खोटी, समजण आ अणगमाचं कारण छे. __आ वातो साव खोटी छे अq पण नथी. ओवी घणी घणी हरकतो संशोधनना नामे थई छे अने थती रहे छे के जेने लीधे परम्परापरायण मानस सहज क्षुब्ध थतुं रहे छे, अने संशोधन प्रत्ये तेने अनास्था वधती रहे छे. अहीं जे खटे छे अथवा जे आवश्यक छे ते छे विवेक. विवेकदृष्टि ओ ज्ञानसंपन्न के श्रद्धासंपन्न चित्तनी अनिवार्यता गणाय. परम्परागत मानस जो ज्ञानाभ्यास माटे विशेष आग्रही होय तो, ते ज्ञानार्जनना समुचित फळ जेवो 'विवेक' तेनामां ऊगवो ज जोई. विवेक नथी ऊगतो त्यां बे वानां लगभग जोवा मळे छ : झनून अने अन्धश्रद्धा. आ बेउनुं फरजंद ते कदाग्रह. अथी ऊलटुं, विवेकदृष्टि खीली होय त्यां बे वानां अनुभवाय छे : उदारता अने विशद श्रद्धा. विवेक आपणने, संशोधन द्वारा सांपडता काल्पनिक के अवास्तविक निष्कर्षो थकी बचावे छे; अने साथे ज, अनुचित रूढ मान्यता तथा परम्परानुं सम्मार्जन पण करवा प्रेरे छे. _ 'राम अने रावण काल्पनिक पात्रो छे'; 'श्रीपाळ अने मयणानी कथा कल्पनानी नीपज छे'; 'शत्रुजयतीर्थ ते साचुं नथी'; - आवी वातो ज्यारे संशोधन द्वारा थवा मांडे, त्यारे संशोधन प्रत्येनो विश्वास डगी जाय तो ते साव स्वाभाविक छे. जे पात्रो अने तत्त्वो, युगोना युगोथी लोक-चेतनानी आस्थाना केन्द्र तरीके प्रतिष्ठित होय; ते तत्त्वोने के पात्रोने 'मिथ्या' गणावनारां संशोधनो पोते तो जूठां होवानां ज, परंतु तेनी असर साचां-तथ्यात्मक होय तेवां संशोधनोओ पण वेठवी ज पडवानी. अने तेथी जे नुकसान थाय ते तो परम्पराओ अने सत्ये ज वेठवानुं

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