Book Title: Anusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 241
________________ पत्रो : ओ खोट शें पराशे ? जे समाचारे समग्र शासनमा खळभळाट मचावी दीधो, समाचार छे महान् संशोधक श्रुतस्थविर मुनिराज श्रीजम्बूविजयजी महाराजश्रीना आकस्मिक काळधर्मना. तेमना जेवा मोटा गजाना तथा निवडेला विद्वान् पुरुष, आq बने ओ न मानी शकाय ओवी वात छे पण बनी गयुं अटले मान्या सिवाय छुटको ज नथी. 'द्वादशारनयचक्र' जेवा महान् । अमूल्य ग्रन्थरत्ननी भेट जेमना अथाग परिश्रम ऊंडी सूझ/बुझना कारणे जैन शासनने थई छे ते श्रीजम्बूविजयजी महाराज संशोधन क्षेत्रना आजीवन भेखधारी पुरुष हता. पं. सुखलालजी तथा पं. बेचरदासभाई जेवा उच्च कोटिना विद्वान् पुरुषो पण तेओनी संशोधन दृष्टिथी प्रभावित थया हता. सिद्धगिरिमण्डन श्री आदीश्वरदादा तथा महाप्रभावक श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु प्रत्येनी अतूट श्रद्धा/भक्ति भलभलाने आश्चर्यचकित करी दे तेवी हती. तेमनी चिरविदायथी प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोना अभ्यास तथा संशोधन क्षेत्रमा कदी न पूराय तेवी खोट पडी छे. तेओना अधूरां कार्योने यथाशक्य पूरा करवामां आवे तेज तेमनी साची श्रद्धांजलि गणाशे. ओज. नवसारी श्रीदेवगुरुचरणरज सं. २०६६ माग-वद-५ विजयहेमचन्द्रसूरि Dr. Willem Bollee (Bamberg, Germany) In 1998 I contributed an article on Suyagada 2, 6 to Muniraj Jambuvijaya's festschrift. I met him twice and got his benediction for my work. So I was very shocked to hear of his demise in a traffic accident. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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