Book Title: Anusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 265
________________ (श्रीजम्बूविजयजी द्वारा लिखित-सम्भवतः-अन्तिम लेख) वर्तमानकालीन संशोधन-सम्पादन युगना आद्य प्रवर्तक आगमप्रभाकर पू. मुनिराजश्रीपुण्यविजयजी म.सा. __पू. मुनिश्री जम्बूविजयजी म.सा. श्रीसिद्धाचलमण्डन-श्रीऋषभदेवस्वामिने नमः । श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः । श्रीनाकोडापार्श्वनाथाय नमः । नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महइमहावीरवद्धमाणसामिस्स । अनन्तलब्धिनिधानाय श्रीगौतमस्वामिने नमः ।। भगवान् महावीर परमात्मानी पहेलां तथा पछी पण सेंकडो वर्षों सुधी अध्ययन-अध्यापननी परम्परा मौखिक ज चालती हती. ते पछी संहनन-मेधाआयुष्य वगेरे जेम जेम घटतां गयां तेम तेम जरूरियात प्रमाणे प्राचीन ग्रन्थोने पुस्तकारूढ करवानी शरूआत थई. परंतु अभ्यासीओ घणा होय अटले ओक पुस्तकथी काम न चाले. अटले ओक ओक ग्रन्थनी अनेक अनेक प्रतिलिपिओ (कोपीओ) करवानी जरूर ऊभी थई. आनाथी आवी प्रतिलिपिओ करनारो ओक लेखकोनो (लहियाओनो) मोटो वर्ग अस्तित्वमां आव्यो. बधा लहियाओ बधी रीते निष्णात होय ओवी आशा न राखी शकाय. लखवामां अेक पण भूल न आवे तथा अक्षरो पण मोटा तथा सुन्दर होय आवा लहियाओ बहु ज थोडा होय. अटले लहियाओनी गुणवत्तामा तरतमभाव आवे ज. तेथी सर्वाङ्गीण संशोधन करनारे शक्य तेटली बधी प्राचीन हस्तलिखित प्रतिओ मेळवी संशोधन करवू जोइओ. __ घणा लांबा समय सुधी टकी रहे ओ माटे प्रारम्भमां ताडपत्र उपर ग्रन्थो १. श्रीआत्मानन्द प्रकाश, भावनगर, वर्ष ९ अंक ६मांथी साभार । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 263 264 265 266 267 268 269 270