Book Title: Anusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 268
________________ मार्च २०१० २६१ लीधेला पाठभेदोवाळी प्रतिने आधारे ज्यारे वाचन करता हता त्यारे छसो-सातसो जेटला शुद्ध पाठो अमने अमां मळ्या हता. समवायाङ्ग सूत्रना पांत्रीसमा स्थानकमां टीकामां सत्यवचनना (तीर्थंकरोनी वाणीना) अतिशयो वर्णवेला छे. अमां २७२८मा अतिशयमां अभ्युतत्वम् अनतिविलम्बितत्वं च प्रतीतम् आवो पाठ छे. खरेखर प्राचीन हस्तलिखितमा भ्यु ना स्थाने भ्यु ज छे, पण लिपिनो मरोड बराबर न समजवाथी भ्यु वांचवानी भूलनु ज आ परिणाम छे. आ भूल वर्षोथी चाल्या ज करे छे अहीं अभ्युत नहि अद्रुत साचो पाठ छे. अटले तीर्थंकर परमात्मानी वाणी अद्रुत = जल्दी जल्दी नहि. तेमज अतिविलम्बित नहि आ आ अनो साचो अर्थ छे. विक्रम सं. २०६१ मां श्रीमहावीर जैन विद्यालयथी प्रकाशित थयेला सटीक समवायाङ्ग सूत्रमा आवा अनेक पाठो अमे सुधारी लीधा छे. हमणां आवश्यक सूत्र उपरनी मलयगिरीया वृत्तिनुं संशोधन चाले छे. पुण्यविजयजी महाराजे हजारो पाठभेदो मुद्रित वृत्तिमां नोंधी राखेला छे. मुद्रितवृत्ति पृ. ११ ओ पं. १ मां अन्येषां (अ) प्रतिबन्धं पर्यालोचयतः तदर्शनेनानध्यवसायः पाठ छपायेलो छे. आनो अर्थ कंई बराबर समजायज नहि, अटले हस्तलिखितमां जोतां अन्येषां प्रतिबन्धं पर्यालोचयतां तददर्शनेनानध्यवसायः आ पाठ मळ्यो . आ ज तदन शुद्ध पाठ छे. पृ. ११ बी पं. २ मां द्रव्यमन्तरेण कथमिव भावानामुत्पत्तिरुपपद्यते पाठ छे. अमे ते ग्रन्थ, संशोधन करती वखते मूळ हस्तलिखित साथे लगभग अक्षरशः मेळवीओ छीओ. प्राचीन हस्तलिखितमां जोता कथमिव ना स्थाने कथमदला पाठ छे. बीजी प्रतिमां पाठ ज छे पण कोइक वांचनारे सुधारीने कथमिव कर्यु छे. पुण्यविजयजी महाराजनी भाषामां कहीजे तो केटलाक अभ्यासी वांचनारा पाठोने सुधारवाने बदले पाठोने बगाडी नांखता होय छे. ओटले कथमदला पाठ उपर ज कलाको सुधी विचार कर्यो. पण कंई समजाय ज नहि. ओचितो मनमां प्रकाश थयो के कथमदला पाठ ज बराबर छे. कथम् अदला = दळ विना पदार्थोनी उत्पत्ति शी रीते थाय आ अनो अर्थ छे. घडो बनाववो होय तो माटी रूपी दळ जोइओ ज. अनेक अनेक ग्रन्थोना आवा आवा हजारो शुद्ध पाठो प्रकाशमां आववा Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 266 267 268 269 270