Book Title: Anusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 244
________________ मार्च २०१० २३७ तो तेओ ७५-७६ वर्षनी उंमरे शीखवा बेठेला ! टिबेटन भाषा शीखवा पाछळनुं निमित्त 'द्वादशार नयचक्र' महाग्रन्थ हतो. जम्बूविजयजी महाराजनी तीक्ष्ण मेघासम्पन्न अन्वेषण-दृष्टिथी पं. सुखलालजी वगेरे विद्वानो खूब प्रभावित थयेला. तेमना मनमां 'सन्मतितर्क' पछी 'नयचक्र'नुं सम्पादन थाय तेनी खूब अपेक्षा हती. ते माटे पोतानी अक्षमताथी तेओ परिचित हता, अने कोई सक्षम प्रतिभानी शोध चालु हती. अमां तेमना ध्यान पर जम्बूविजयजी आव्या, अने तेमणे तथा पुण्यविजयजी महाराजे ठराव्यु के 'नयचक्र' महाग्रन्थ, संशोधन तथा पुनर्गठन कोई करी शके तेम होय तो ते अकमात्र जम्बूविजयजी ज छे. ओ विद्वज्जनोओ जम्बूविजयजी पर कळश ढोळ्यो. ओ प्रक्रियामां अक तरफ जम्बूविजयजीनी कसोटी हती, तो बीजी तरफ दिग्गज विद्वानो द्वारा तेमनी प्रतिभानी स्वीकृति पण हती. तेमणे ओ पडकार झीली लीधो, अने पोताना समग्र सामर्थ्यने, बौद्धिक क्षयोपशमने 'नयचक्र'ना पुनरुद्धारना कार्यमां कामे लगाडी दीधां. आ महान ग्रन्थकार्य माटे चीनी अने तिबेटन भाषानी पोथीओ उकेलवी अनिवार्य हती. अने ओ माटे ते भाषाओ तथा लिपि शीखवानुं पण अनिवार्य हतुं. से कार्य माटे तेमणे कमर कसी, अने सामग्री भेगी करवा मांडी. आ कार्यमां पूज्य पुण्यविजयजीनो पूरो साथ-सहयोग मळ्यो. तेमणे आ बधां माटे भरपूर सहाय पूरी पाडी. भावनगरना राजवी कृष्णकुमारसिंहजी, भावनगर जैन संघना वडा तथा लोकसभाना सभ्य शेठ भोगीलाल मगनलालनो सहयोग मळ्यो, अने तेमना प्रयत्नथी वडाप्रधान पण्डित नहेरुजीओ आ कार्यमां रस लईने तत्कालीन चीनी दूतावासनो सम्पर्क साधीने चीनथी तथा तिबेटथी अपेक्षित ग्रन्थो तथा सामग्री मेळवी आप्यां. साथे साथे ते भाषाओ शीखवनार शिक्षकोनो पण प्रबन्ध थयो. घणा परिश्रम पछी, खंतपूर्वक तेओओ बहुज झडपथी ओ भाषा तथा लिपि हस्तगत करी लीधां. अने पछी शरु थयो नयचक्र ग्रन्थनो ज्ञानयज्ञ, जे आशरे त्रीस वर्ष सुधी अविरतपणे चालतो रह्यो. अना मधुर फळलेखे आपणने त्रण विभागोमां मळ्यो महाग्रंथ : "द्वादशारं नयचक्रम्". आ ग्रन्थना संशोधन Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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