Book Title: Anukampa
Author(s): Ratanchand Chopda
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 12
________________ अनुकम्पा जीव भेद : शारीरिक स्वरूप भेद से जीवों को ६ मुख्य समुदायों में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है : - ( १ ) वह जीव समुदाय जो पृथ्वी के पुद्गलों से शरीर रचना करता है (२) वह जो जल से शरीर रचना करता है (३) वह जिनका पवन ही शरीर है ( ४ ) वह जिनका अग्नि शरीर है (५) वह जिनका बनस्पति - शरीर है ( ६ ) तथा वे जो त्रस हैं अर्थात् जिनमें आवागमन को, चलने फिरने की शक्ति है। त्रस जोवों के इन्द्रिय न्यूनाधिक्य के अनुसार चार उपभेद हैं- बेइन्द्री (स्पर्श तथा रस इन्द्री युक्त जैसे लट, गिडोला इत्यादि); तेइन्द्री स्पर्श, रस तथा घ्राण इन्द्री युक्त जैसे कीड़ी मकोड़े इत्यादि); चौरेन्द्री (स्पर्श, रस, घ्राण तथा चक्षु इन्द्री युक्त जैसे मक्खी इत्यादि) पंचेन्द्री (स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु तथा श्रोत इन्द्री युक्त जैसे गाय, घोड़े, पशु, पक्षी इत्यादि) । मानव प्राणी पंचन्द्री जीवों के अन्तर्गत हैं, पर ये विशिष्ट पद वाले हैंइनकी विवेक तथा बिचार शक्ति विशेष रूप से विकसित है। इनमें शेषोक्त भेद त्रस जीव तो अपनी आवागमन की क्रिया के कारण जैन सिद्धान्तों से अनभिज्ञ पुरुषों द्वारा भी जोव श्रेणी में शीघ्र ही सम्मिलित कर लिया जाता है । पर इसके पूर्व के जीव समुदाय तो स्थावर हैं, इनमें जीव सम्बन्धित बाह्य क्रियाओं का अस्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होता तथा इसीलिये इनके जीवत्व के सम्बन्ध में शंका उठनी अस्वाभाविक नहीं । पर हमें हर्ष है कि विज्ञान ने ऐसी शंकाओं का समाधान जीवत्व की क्रियाओं को प्रत्यक्ष दिखा कर कर दिया है। आचार्य जगदीशचन्द्र बोस ने यह सिद्ध किया है कि पेड़ पौधों में, लता गुल्मों अर्थात पूरे उद्भिज्ज जगत् में संवेदन शक्ति काफी तीव्र रूप में मिलती है । इसी भांति पृथ्वी एवं जल में जीव का अस्तित्व विज्ञान - प्रमाणित है। यही प्रमाण शेष दो, वायु तथा अग्नि में जीव स्थिति की धारणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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