Book Title: Anukampa
Author(s): Ratanchand Chopda
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 14
________________ के इस वास्तविक तथ्य को समझाने के लिये ही हुआ था। बड़े एवं मलिष्ट जोवों का सम्मान तो किया जाता ही है। इसमें विशेषता कौन सी ? पर आचार्य वर ने बड़े आकार वाले जीवों के पक्ष में किये नाने वाले रागद्वेष युक्त पक्षपात के सच्चे स्वरूप को समझ कर छोटे एवं बड़े सभी जीवों को निष्पक्ष भाव से अपने दया के झण्डे के नीचे स्थान दिया। आचार्यवर की जीव मात्र के प्रति समबुद्धि थी। उन्होंने शारीरिक या इन्द्रिय वैभव से मोहित होकर किसी के प्रति पक्षपात न किया। आचार्यवर ने ही जीव की भिन्न-भिन्न जातियों में चेतना के एकीभाव के आधार पर साम्यवाद की स्थापना की। अपने परिवार, अपनी जाति को तो सभी चाहते हैं इससे बढ़कर वह है जो दूसरे के दुःख निवारण के लिये अपने को होम दे। इसी में दया का उत्कष है। आचार्यवर ने कोई नये सत्य का उद्घाटन नहीं किया, उन्होंने तो चिर पुरातन सत्य को, उसपर जमे सदियों के शिथिलाचार को दूरकर, द्विगुणित ज्योति के साथ स्थापित किया था। जैनधर्म की निवृत्ति प्रधान भावना के आधार पर पूज्यपाद भिक्षु स्वामीजी ने दवा की जो व्याख्या की है, एवं साधु आचरण की जो नींव डाली है वह शास्त्रों की सच्ची पुकार है। इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं। आचार्यवर ने क्षुद्र जीवों की सारगर्भित ढंग से वकालत की है। इसीने हमारी आंखें खोल दी हैं। अब हम भ्रमान्धकार में रहना नहीं चाहते। यदि हम निज स्वार्थ या पारिवारिक स्वार्थ बुद्धि से दूसरों को पीड़ा दें, तो हम दया के कर्ता क्योंकर हुए ? जीवों की इतनी विभिन्न योनियों को देखते हुए मनुष्य योनि को हम एक परिवार मान लें तो अत्युक्ति कुछ भी नहीं। इस परिवार के लिये दूसरे जीवों का हनन करें या करावे' तो यह तो एक स्वार्थपरता ही है। केवल भ्रम ने हमारी आँखों पर परदा डाल रखा है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि, मनुष्य के लिये भी छोटे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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