Book Title: Anukampa
Author(s): Ratanchand Chopda
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 25
________________ अनुकम्पा यह तो स्वाभाविक है कि श्रावक के क्रिया कलापों में हिंसा तथा अहिंसा ओत प्रोत हैं। पर हमें सर्वदा सतर्क रहना चाहिये कि श्रावक का वही कार्य अनुकरणीय है जो अहिंसक हो। अहिंसक उद्देश्य से किया गया हिंसक कार्य भी हिंसक ही है। अत: उच्च उद्देश्य के भुलावे में पड़ कर ही हिंसक कार्य को अहिंसक करार नहीं दे सकते।। ___ अब हम इस विवेचन को इस हार्दिक इच्छा के साथ सम्पूर्ण करते हैं कि सुखों की बेल सुखों की खान दया भगवती का आलम्बन कर “सव्वे सत्ता सुखिनो भवन्तु सव्वे सन्तु निरामया" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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