Book Title: Angabahya Agam Jain History Series 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: 108 jain Tirth Darshan Trust

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Page 11
________________ શ્રી ચિંતામણી પાર્શ્વનાથ પાર્શ્વનાથાય નમઃ घनघोर आ ठलिहाभां, साया सहारा छो तमे, निर्धन-धनि उत्तभ-अधभ सौने उगारो छो तभे, भुल्ने उगारी लो, पुआडी टो सशानां शाभां, हे यिंताभासी पार्श्वप्रभु, रहे सटा भुरस्भराभां पार्श्व श्री यिंताभाशी भेरो भेरो सहयोग पार्श्व थिंताभाशीपार्श्वनाथ प्रभु शिनालयनी अंग्नशताडा _प्रतिष्ठा महोत्सवनी स्मृतिभा श्री विलेपारो श्वेतांजरभूतिधूठ न संघ सेन येरीटी विलेपारो (पूर्व), मुंजछ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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