Book Title: Anekantvad Pravesh
Author(s): Haribhadrasuri, Hemchandrasuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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॥ सूरिप्रेमाष्टकम् ॥ रचयिता -प. पू. पंन्यासः श्रीकल्याणबोधिविजयजी गणी
(वसन्ततिलका) श्रीदानसूरिवरशिष्यमतल्लिकाऽसौ, जैनेन्द्रशासनमहाकुशलौघकल्पः। सिद्धान्तवारिवरवारिनिधिर्महर्षिः, श्रीप्रेमसूरिरवताद्भवरागनागात् ॥१॥ कर्माख्यशास्त्रनिपुणो ह्यनुहीरसूरिविश्वाद्भुतप्रवरसंयतगच्छकर्ता । मौनप्रकर्षपरिदिष्टमहाविदेहः, श्रीप्रेमसूरिरवताद्भवरागनागात् ॥२॥ चारित्रचन्दनसुगन्धिशरीरशाली, स्वाध्यायसंयमतपोऽप्रतिमैकमूर्तिः। मन्ये करालकलिकालजवीतरागः, श्रीप्रेमसूरिरवताद्भवरागनागात् ॥३॥ अत्यन्तनिःस्पृहमनःकृतदभ्ररागः, सन्तोषकेसरिविदीर्णविलोभनागः। कल्याणबोधिमचलं प्रतिजन्म दद्यात्, श्रीप्रेमसूरिरवताद्भवरागनागात्॥४॥
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