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पदार्थविज्ञान का पूर्ण प्रतिपादन करने वाले आज हजारों एक से एक आला दर्जे के ग्रन्थ मौजूद हैं और मूल आगम जैसे भगवती समवायांग प्रज्ञापना या अनुयोगद्वार सूत्रों में इस बाबत मं सम्यग प्रतिपादन किया गया है इसलिये स्याद्वाद को संशयवाद मान में सत्य में सशय पैदा करना एव सत्य का प्रतीकार समझा जाता है। आज तो अंतरराष्ट्रीय ख्याति (International reputation) के अनेक धुरंधर विद्वान डा० गंगानाथ झा, प्रो० आनन्दशकर ध्रुव, फणिभूपण अधिकारी, डा० सतीशचन्द्र विद्याभूषण, महावीरप्रसाद द्विवेदी, डा० परटोल्ड, डा० हर्मन जेकोबी डा० हेल्मय बोन ग्लेजनंप, डा० टेमेटोरी आदि पौर्वात्य और पाश्चात्य अनेक विद्वान् स्याद्वाद की मुक्त कठ से प्रशंसा करते हुए फरमाते है कि स्यादवाद संसार की संघटन शक्ति (Unifying Force) है और सब मतभेद और भिन्न भिन्न दृष्टियों के समन्वय करने वाला (Compromising system of philosophy) दर्शन है, इसका अनेकान्त नाम सार्थक है क्योंकि वह अनेक विचारवैमनस्यो का सुन्दर ढंग से समाधान करता है ।
इन सब के अभिप्रायों का यथार्थ उल्लेख करने की भावना थी, परन्तु मै यहाँ स्वतन्त्र निबन्ध नहीं लिख रहा है लेकिन एक निबन्ध की प्रस्तावना लिख रहा हॅू इसलिये विशेष लिखना अमर्यादित एव अप्रासंगिक समझा जाता है इसलिये इतना ही सक्षेप में लिखना उपयुक्त समझता हूँ । इस निबन्ध के लेखक को मिलने की उत्कण्ठा होने हुए भी मेरा मिलना नही हुआ और उनका अचानक स्वर्गवास हो जाने से दिल की भावना दिल में ही रही। इतना कहना कोई अत्युक्त नहीं होगा कि उनके लेखो ने मेरे हृदय में उनके प्रति बड़ा सद्भाव पैदा किया था इसलिये प्रसग २ पर उनको याद करता ही रहता हूँ । एक दफे मेरा बेंगलोर जाना हुआ और वहाँ पर बिराजे हुए महाराज से वार्ता -