Book Title: Anekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ अध्यात्म पद निज हित कारज करना निज हित कारज करना रे भाई ! निज हित कारज करना, जन्म- मरण दुख पावन यातें सो विधि बंध कतरना। निज.. ज्ञान दरस अर राग फरस रस निज पर चिन्ह भ्रमरना, संधि भेद बुधि छैनी से कर, निज गहि पर परिहरना। निज.. परिग्रही अपराधी शंके, त्यागी अभय विचरना, त्यौं पर चाह बंधा दुखदायक त्यागत सब सुख भरना। निज.. जो भव भ्रमन चाहे तो अब सुगुरू सीख उर धरना, दौलत स्वरस सुधारस चाखौ ज्यों विनसै भव मरना। निज.. - दौलतराम जी

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