Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 4
________________ अध्यात्म-पद लोभ महा दुखदाई जिय कौ लोभ महा दुखदाई । जाकी सोभा वरनी न जाई ।। लोभ करै मूरख संसारी । छाडै पंडित सिव अधिकारी ।। जिय . . . |||| तजि घर वास फिरै वन मांही, कनक कामिनी छांडै नांही ।। लोक रिझावन कौं व्रत लीना । -7143 व्रत न होय ठगि सा कीना । । जिय लोभ वसात जीव हति डारै । झूठ बोलि चोरी चित धारै ।। नारि है परिग्रह विसतारै । पांच पाप करि नरक सिधारै ।। जिय... जोगी जती गृही वनवासी। वैरागी दरवेश संन्यासी ।। अजस खानि जस की नहीं रेखा । द्यानत जिनकै लोभ विसेखा ।। जिय.. - 112 11 11311 114 11 कविवर द्यानतराय जी

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