Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir TrustPage 11
________________ अनकान61/1.9.2.4 161/1-2-3-4 है। लेखकों से हमारा निवेदन है कि वे स्तरीय निबन्ध प्रकाशन हेतु भेजते रहें और सुधी पाठक निबन्धों को पढ़कर अपने विचार हमें अवश्य प्रेषित करें; महत्त्वपूर्ण विचारों को भी हम पत्रिका में स्थान देंगे। डॉ. अनेकान्त कुमार जैन लेखकों से निवेदन 1. लेख स्वच्छ - हस्तलिखित अथवा टंकित ही भेजें। 2. लेख के साथ इस आशय का प्रमाण पत्र अवश्य संलग्न करें कि यह लेख अन्यत्र अप्रकाशित है तथा प्रकाशन हेतु कहीं नहीं भेजा गया है। 3. अप्रकाशित निबन्ध को ही प्रकाशन में वरीयता दी जायेगी तथा निर्धारित मानदेय भी दिया जायेगा। 4. यदि लेख कम्प्यूटर पर टंकित हो तो उसके Font के साथ उसे सी. डी. के रूप में भी भेज सकते हैं। अथवा, उसे हमारे निम्नलिखित ID पर E-mail द्वारा भी भेज सकते हैं : veersewamandir@gmail.com 5. पुस्तक समीक्षा हेतु पुस्तक की दो प्रतियाँ अवश्य भेजें तथा संभव हो तो दो पृष्ठों में उस पुस्तक का संक्षिप्त परिचय भी भेजें। स्तरीय तथा महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों की ही समीक्षायें प्रकाशित की जायेंगी। 6. लेख भेजने से पूर्व उसकी एक प्रति अपने पास सुरक्षित रखें। अप्रकाशित निबन्ध लौटाये नहीं जायेंगे। 7. लेख में उल्लिखित मूल श्लोकों, गाथाओं, उद्धरणों तथा सभी सन्दर्भो को मूल ग्रन्थ से मिलाकर शुद्ध करके ही भेजें। प्रायः प्रूफ रीडिंग में इनका मिलान आपके प्रेषित लेख की मूल कॉपी से ही संभव होता है।Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 201