Book Title: Anekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ जन विषय-सूची अनेकान्त को सहायता विषय अनेकान्त को विवाह प्रादि से निम्न सहायता प्राप्त १. शम्भव-जिन स्तुति-प्राचार्य समन्तभद्र हुई है। पाठक नोट कर ले और विवाहादिक शुभ प्रत्र२. मुक्तक काव्य-पांडे रूपचन्द सरों पर अनेकान को दान देना न भूले । क्योंकि अने३. जैन दर्शन की अनेकान्त दष्टि कान्त जैन समाज का एक प्रतिष्ठिन और माहित्य इति. डा० दरबारीलाल जैन हास का एक शोध पत्र है। ४. भाषा की उत्पत्ति व विकास - गणेशप्रसाद जैन २१) रुपया प्रेमनाथ जन ज्वाइन्ट सेक्रेटरी मिनि५. वैशाली गणतत्र का अध्यक्ष राजा चेटक स्टरी पाफ फाईनेन्स नई दिल्ली ने पुत्र विवाह के उप. (ऐतिहासिक पाख्यान)-परमानन्द जैन शास्त्री ३५ लक्ष्य मे अनेकान्त को २१) रुपया पं० खेमचन्द की ६. विश्व संस्कृत सम्मेलन मे जैन विद्या का मार्फत सधन्यवाद प्राप्त हुए है। प्रतिनिधित्व-प्रो० प्रेम सुमन जैन ३५ २१) राय बहादुर सेठ हरखचन्द जी के अनुज श्री ७. उत्तर भारत में जैन यक्षिणी चक्रेश्वरी की | ताराचन्द जी के सुपुत्र नरेन्द्र कुमार जी के विवाहोपलक्ष मूर्तिगत अवतारणा-मारुतिनदन प्रसाद ति० ६५ | मे निकाले हुए ११०१) के दान में से अनेकान्त को ८. बड़ा मन्दिर पनागर की प्राचीन जैन २१ ० मधन्यवाद प्राप्त हुए। शिल्पकला-स्तूरचन्द सुमन एम. ए .१. ११) रु. श्री रामस्वरूप नेमीचन्द जी जैन द्वारा ६. पं० बखतमम शाह-परमानन्द जैन शास्त्री ४५ | नेमिचन्द जी के सुपुत्र जनेशकुमार के पाणिग्रहण सस्कार १०. अपभ्रश की। अज्ञात कथा रचना के समय निकाले हुए दान मे से ग्यारह रुपया सधन्यवाद डा. देवेन्द्र कुमार जैन ४७ प्राप्त हुए। व्यवस्थापक अनेकान्त के ग्राहकों को सूचना वीर सेवामन्दिर, दरियागज अनेकान्त के जिन ग्राहकों ने अपना वार्षिक मूल्य | दिल्ली अभी तक नही भेजा। उन्हे चाहिए कि वे अक मिलते हो अपना वार्षिक मूल्य ६) रुपया मनी प्रार्डर से भेज दे । खेद प्रकाश अन्यथा अगला प्रक वी. पी. से भेजा जायगा। जिससे उन्हें वी. पी. खर्च का एक रुपया पच्चीस पैसे अधिक इस अक के प्रकाशन में बहुत अधिक बिलम्ब हो गया देने होगे। अतः छह रुपया शीघ्र भिजवा देवे । है। उसका कारण प्रेस वाले का अपनी पुत्री के विवाह व्यवस्थापक 'अनेका.त' में घर जाना है। और विवाहोपरान्त किसी इप्ट का घोर.सेवामन्दिर, २१ दरियागंज | वियोग हो जाने के कारण दो महीने का समय लग गया। दिल्ली इससे इस अंक की छपाई में अधिक विलम्ब हुआ और पाठकों को प्रतीक्षा जन्य कष्ट उठाना पड़ा, जिसका हमें सम्पादक-मण्डल अत्यधिक खेद है। प्रागे इस प्रकार का बिलम्ब न हो डा० प्रा० ने० उपाध्ये इसकी सावधानी रखने का प्रयत्न किया जा रहा है। डा. प्रेमसागर जैन व्यवस्थापक 'अनेकान्त' श्री यशपाल जैन परमानन्द शास्त्री अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया मण्डल उत्तरदायी नहीं हैं। -व्यवस्थापक अनेकान्त | एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पैसा

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