Book Title: Anekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ धनेकाल १०. वर्ष २५, कि० १ मुंह खोलने वाले शब्दों का ही प्रयोग बहुलता से है । 'भारत देश' मे भी उत्तर प्रदेश वासी किसी 'शब्द' को अपने ढंग से कहेगा, तो पंजाब प्रदेश का व्यक्ति यदि उसी शब्द का उच्चारण करेगा तो भिन्नता होगी। बगाल निवासी 'संस्कृत शब्दों' का उच्चारण विकृत रूप में करते हैं। मरुस्थल के निवासी कण्ठ से बोले जाने वाले शब्दो का अधिक व्यवहार करते है ।" । कुछ विद्वानों का मत है कि "सृष्टि के प्रारम्भ में ( काल में ) सब मनुष्य एक ही स्थान मध्य एशिया मे ही रहते थे, उस समय उनकी भाषा एक थी। कुछ विद्वानों की धारणा है कि 'पार्थ' लोग पहले-पहल 'तिब्बत' से 'भारतवर्ष' में उतरे और वहीं से कालुक होकर पश्चिम की घोर फैलने लगे। जो हो, जीविका की लोज मे, या अन्य किसी कारण से भिन्न-भिन्न देशों मे लोग जा बसे । गंगा के किनारे से लेकर 'आइसलैंड' तक, स्वीडन से फोट तक घायों की शाखाए फैल गई। 'भारत' का अधिकांश भाग "अफगानिस्तान, ईरान मौर धार्मिनिया" ( इतना एशिया) और तीन-चौथाई भाग का "स्वीडन पोरखे का" अधिकांश हिस्सा तथा वास्क, हंगरी और तुकिस्तान के अतिरिक्त यूरोप के अधिकाश भागो में आर्यों की विभिन्न टोलियाँ जा वसी । जिन विद्वानों का मत है कि धार्य लोग मध्य एशिया' से भारत आये उनके कथनानुसार 'भार्यावर्त' में पहलेपहल धार्य लोग 'सिन्धु नदी के किनारे पर बसे धीरेधीरे ये सारे देश तथा 'लका, ब्रह्मा, कम्बोडिया और मलाया' तक फैल गये । आर्यों की विशिष्ट बस्ती होने के कारण 'विध्याचल और हिमालय के बीच के प्रदेश का नाम 'आर्यावर्त' पड गया । भिन्न-भिन्न प्रदेशों की जलवायु को भिन्नता के प्रभाव के कारण प्राय की 'आदिम 'भाषा' के उच्चारण मे अन्तर पडने लगा । नवीन देश में पाकर नवीन वस्तुओं के लिए, नवीन स्थिति अनुसार नवीन धारम्भ किये कार्यों के लिए उन्हें नवीन शब्दों की कल्पना करनी पड़ी जिससे उनकी भाषा नवीन शब्दों से अलंकृत हो नवीन रूप पहरण करती रही। नई प्रौर पुरानी भाषा के योग से यह भी हुमा कि उनकी प्रादिम-भाषा के मूल शब्द जो थे, वह भी नवीन देश में कुछ विकृति के साथ बोले जाने लगे । हमारे पूर्वज जब बढ़कर भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जाकर बसे, तो उनमें से जो लोग 'पश्चिम' गये थे उनमें ग्रीक, लंटिन, श्रग्रेजी मादि भाषाएं बोलने वाली जातियों की उत्पत्ति हुई और जो लोग 'पूर्व' की घोर गये उनके दो दल हो गये, एक भाग 'फारस' को गया दूसरा काबुल होता हुमा भारतवर्ष पहुंचा। पहले दल ने ईरान में मोडी भाषा के द्वारा फारसी भाषा की सृष्टि की। दूसरे दल ने 'संस्कृत' का प्रचार किया। 'संस्कृत' से पूर्व बोली जाने वाली भाषा का नाम 'प्राकृत' था, वेदों में मंत्र'प्राकृत' में भी पाये जाते हैं। भाषा का वर्गीकरण : 2 विद्वानों का अनुमान है कि संसार में लगभग दो हजार प्रकार की भाषाए (उप-भाषाभों और बोलियों को छोड़कर) हैं । इन सबका वर्गीकरण चार खण्डों में हुआ है- १. फीका-खण्ड २. युरेशिया-खण्ड ३, प्रशांत महासागरीय लण्ड धौर ४. धमेरिका-मण्ड 'युरेशिया खण्ड' में सेमेटिक, काकेशस, यूराल, अल्टाइक, एकाक्षर, द्राविड़, घाग्नेय, अनिश्चित पोर भारोपीय (भारतयूरोपीय ( नाम की माठ शाखाओं का अन्तर्भाव होता है । भारतीय कुल की भाषाएं उत्तर भारत, मफगानिस्तान, ईरान तथा प्राय: सम्पूर्ण यूरोप मे बोली जाती हैं । ये भाषाएं "कट्ठेम् धौर शतम्" नाम के दो समूहों में विभक्त हैं। तम (एक सौ ) वर्ग में इमीरियन, वाल्टिक, स्लैबो निक, धार्मेनियन और पार्य भाषाओं का समावेश होता है। धार्य अथवा ईरानी उप-कुल की तीन मुख्य भाषाएं हैं—१. ईरानी, २. दरद भोर भारतीय-भायं भाषा । 'पुरानी ईरानी' के सर्वप्राचीन नमूने पारसियों के घमं ग्रंथ अवेस्ता में पाये जाते हैं। यह भाषा ऋग्वेद से मिलती-जुलती है। 'दरद' भाषा का क्षेत्र पामीर मौर पश्चिमोत्तर पंजाब के बीच का क्षेत्र है। संस्कृत-साहित्य में काश्मीर के पास के प्रदेश के लिए 'दरद' का प्रयोग' हा है। भारतीय पायं भाषाओंों को तीन युगों में विभक्त किया है- १: प्रथम युग, २. द्वितीय युग और ३. तृतीय '

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