Book Title: Anekant 1948 06
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 12
________________ रावणफार्श्वनाथकी अवस्थिति (लेखक-श्रीअगरचन्द नाहटा) 'अनेकान्त'के गत अक्तूबरके अङ्कमें पद्मनन्दि- १ क्षेमराज (१६वीं)के फलौधी-स्तवन (गा. २४)मेंरचित रावणपार्श्वनाथस्तोत्र प्रकाशित हुआ है। "थंभणपुरि महिमा निलो, गऊउडर गोडापु उसका परिचय कराते हुए सम्पादक श्रीमुख्तार जेसलमेरहि परगडो रावणि अलवर पूरइ बास । २० साहबने लिखा है कि “यह स्तोत्र श्रीपद्मनन्दि मुनिका २ साधुकीर्ति रचित (सं० १६२४) मौन - एकादशीरचा हुआ है और रावणपत्तनके अधिपति अर्थात् स्तवन (गाथा १७)में:वहाँ स्थित देवालयके मूलनायक श्रीपाश्वजिनेन्द्रसे "गढ नयर अलवर सुखहमंडप पास रावणसंपुण्यउ।" सम्बन्धित है; जैसा कि अन्तिम पद्यसे प्रकट है। ३ रत्नजय (१८वीं) कृत १५७ नाम गभित पार्श्वमालूम नहीं यह “रावणपत्तन" कहाँ स्थित है और स्तवन गा. १७)में:उसमें पार्श्वनाथका यह देवालय (जैनमन्दिर) अब . "अंतरीक वीजापुरै रे लाल अलवर रावणपास।" भी मौजूद है या नहीं, इसकी खोज होनी चाहिये।" ४ रत्ननिधान (१७वीं) कृत पार्श्वलघु - स्तवन (गा. ९)मेंतीन वर्ष हुए श्वे. साहित्यमें रावणपार्श्वनाथका “जीरावलि सोवन गिरइ, अलवरगढ़ रावण जागइरे" उल्लेख अवलोकनमें आनेपर मेरे सामने भी यह प्रश्न ५ कल्याणसागरसूरि-रचित रावणपावाष्टकमेंउपस्थित हुआ था और अपनी शोध-खोजके फल- "अलवरपुररत्न रावणं पार्श्वदेवं, स्वरूप इसकी अवस्थितिका पता लग जानेपर जैन प्रणतशुभसमुद्रं कामदं देवदेवं ।" सत्यप्रकाशके क्रमाक ११४में "रावणतीर्थ कहाँ है ?" रावणपार्श्वनाथकी प्रमिटिका पता अभी तक शीर्षक लेखद्वारा प्रकाश डालनेका प्रयत्न किया गया श्वे० साहित्यसे ज्ञात था। पद्मनन्दिके स्तोत्रसे उसकी था। मेरे उक्त लेखसे स्पष्ट है कि रावणपार्श्वनाथ प्रसिद्धि दोनों सम्प्रदायोंमें समानरूपसें रही ज्ञात कर वर्तमान अलवरमें स्थित है। इसके पोषक ९ उल्लेख- हर्ष होता है। वर्तमान मेल-जोलके युगमें ऐसी बातों १६वीं शताब्दीसे वर्तमान तकके-उस लेखमें दिये एवं तीर्थों आदिपर विशेषरूपसे प्रकाश डालना गये थे एवं रावणपार्श्वनाथकी नवीन चैत्यालय- अत्यन्त आवश्यक है, जो दोनों सम्प्रदायवालोंको स्थापना (जीर्णोद्धार)का सूचक सं० १६४५के शिला- समानरूपसे मान्य हों। अलवरके रावणपार्श्वनाथका लेखको भी प्रकाशित किया गया था। इसी समय इतिहास मनोरञ्जक एवं कौतूहलजनक होना चाहिये। अलवरसे प्रकाशित 'अरावली' नामक पत्रके वर्ष १ नामके अनुसार इस पार्श्वनाथ-प्रतिमाका सम्बन्ध अङ्क १२में "जैनसाहित्यमें अलवर" शीर्षक लेखमें रावणसे या अलवरका प्राचीन नाम रावणपत्तन भी इसके सम्बन्धमें प्रकाश डाला गया था। यहाँ होना विदित होता है। अतः अलवर निवासी जैन उसके पश्चात् जो कतिपय और उल्लेख अवलोकनमें भाईयों एवं अन्य विद्वानोंको उसका वास्तविक इतिआये हैं वे दे दिये जाते हैं: हास शीघ्र ही प्रकाशमें लानेका प्रयत्न करना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org

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