________________
स्मृतिकी रेखाए
सन्मति - विद्या - विनोद
प्यारी पुत्रियो ! सन्मती और विद्यावती ! आज तुम मेरे सामने नहीं हो— तुम्हारा वियोग हुए युग बीत गये; परन्तु तुम्हारी कितनी ही स्मृति आज भी मेरे सामने स्थित हैं - हृदयपटलपर अति है । भले ही कालके प्रभाव से उसमें कुछ धुंधलापन आ गया है, फिर भी जब उधर उपयोग दिया जाता है तो वह कुछ चमक उठती है । बेटी सन्मती,
तुम्हारा जन्म असोज सुदि ३ संवत् १९५६ शनिवार ता० ७ अक्तूबर सन् १८९९ को दिन १२ बजे सरसावामें उसी सूरजमुखी चौबारे में हुआ था जहाँ मेरा, मेरे सब भाइयोंका, पिता- पितामहका और न जाने कितने पूर्वजोंका जन्म हुआ था और जो इस समय भी मेरे अधिकार में सुरक्षित है। भाई-बाँके अवसरपर उसे मैंने अपनी ही तरफ लगा लिया था ।
भी शेष है कि एक लंगोटी लगाने वाला जिसके पास दो शाम खानेको है, वह भी अपना एक शामका भोजन दान कर सकता है । जहाँ जैनियोंके परिग्रह संचयके उदाहरण हैं वहाँ परिग्रह त्यागके भी सैकड़ों उदाहरण वर्तमान हैं । इसीलिये ये बिना सरकारी सहायता के शिक्षा प्रचार एवं अन्य सामाजिक उन्नतिके कार्य जैन समाज द्वारा अनेक होरहे हैं।
1
आज स्वतन्त्र भारतमें भगवान महावीरके उपर्युक्त समाजवाद के प्रचारकी नितान्त आवश्यकता हैं। इससे समाजको बड़ी भारी शान्ति मिलेगी। क्या प्रमुख नेता लोग इधर ध्यान देंगे ? क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको राष्ट्रपाल: काले काले च सम्यग्वर्षतु मघवा व्याधयो यान्तु नाशम् । दुर्भिक्ष चौरमारी क्षणमपि जगतां मास्मभूञ्जीवलोके, जैनेन्द्रं धर्मचक्रं प्रभवतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि ॥
9
Jain Education International
.
बालकोंके जन्म समय इधर ब्राह्मणियाँ जो बधाई गाती थीं वह मुझे नापसन्द थी तथा असङ्गत-सी जान पड़ती थी और इसलिये तुम्हारे जन्मसे दो एक मास पूर्व मैंने एक मङ्गलबधाई' स्वयं तैयार की थी और उसे ब्राह्मणियों को सिखा दिया था । ब्राह्मणियोंको उस समय बधाई गानेपर कुछ पैसे टके ही मिला करते थे, मैंने उन्हें जो मिलता था उससे दो रुपये अधिक अलग से देनेके लिये कह दिया था और इससे उन्होंने खुशी-खुशी बधाईको याद कर लिया था । तुम्हारे जन्मसे कुछ दिन पूर्व ब्राह्मणियों की तरफ से यह सवाल उठाया गया कि यदि पुत्रका जन्म न होकर पुत्रीका जन्म हुआ तो इस बधाईका क्या बनेगा ? मैंने कह दिया था कि मैं पुत्र-जन्म और पुत्रीके जन्ममें कोई अन्तर नहीं देखता हूँ- मेरे लिये दोनों समान हैं— और इसलिये यदि पुत्रीका जन्म हुआ तब भी तुम इस बधाईको खुशी से गासकती हो और गाना चाहिए । इसीसे इसमें पुत्र या सुत जैसे शब्दों का प्रयोग न करके 'शिशु' शब्दका प्रयोग किया गया है और उसे ही 'दें आशिश शिशु हो गुणधारी' जैसे वाक्य द्वारा आशीर्वाद के दिये जानेका उल्लेख किया गया है । परन्तु रूढिवश पिताजी और बुधाजी आदिके विरोधपर ब्राह्मणियोंकों तुम्हारे जन्मपर बधाई गाने की हिम्मत नहीं हुई; फिर भी तुम्हारी माताने अलग से ब्राह्मणियोंको अपने पास बुलाकर बिना गाजे-बाजेके ही बधाई गवाई थी और उन्हें गवाईके वे २) रु० भी दिये थे। साथ ही दूसरे सब नेग भी यथाशक्ति पूरे किये थे जो प्रायः पुत्र-जन्म के अवसरपर दूसरोंको कुछ देने तथा उपहारमें आये हुए
१ इस मंगल बधाईकी पहली कली इस प्रकार थी"गावो री बधाई सखि मंगलकारी ।"
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org