Book Title: Anekant 1948 05
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 45
________________ किरण ५] सम्पादकीय २०९ हालेण्ड, जर्मन आदिकी तरह छोटे-छोटे क्षेत्रोंमें था। अब तो यह अपनी मनोभिलषित इच्छाओंकी विभाजित हो जायगा। पूर्तिका अमोघ उपाय बन गया है । स्वतन्त्रताके बाद - जाति-मदका अब यह हाल है कि अब यह तप-त्यागकी आवश्यकता नहीं रही, अतः बड़े-बड़े चतुर्वणों में सीमित न रहकर हजारों शाखा-उप देश-द्रोही भी अब अपनेको देशभक्त बेझिझक कहते शाखाओं में फूट निकला है। ये चतुर्वर्ण एक दूसरेसे हैं । जो अधिकारी गान्धी कैपको देखकर भड़क लड़ते ही थे अब परस्परमें भी ताल ठोकने लगे हैं। उठते थे, वे अब गान्धीजीके चित्रकी पूजा करते हैं। म्यूनिस्पलकमेटियों, डिस्ट्रिक्टबोडोंके चुनावों में संघर्ष- जिन अधिकारियोंने देश-भक्तोंको फांसीपर लटका समाचार हमारे सामने हैं। अब केवल चार वर्षों में दिया, गोलियोंसे भून दिया, जेलों में सड़ा-सड़ाकर ही संघर्ष नहीं रहा, अपितु चौबे-पाण्डे, मिश्र-द्विवेदी, मार डाला, वे भी आज देशभक्तिका जामा पहन कर गहलोत-राठौड़, चौहान-कछवाहे, जाट-अहीर, गूजर- बड़ी शानसे निकलते है। माली, अग्रवाल-श्रोसवाल, माहेश्वरी-खण्डेलवाल, देश-सेवक जूझते रहे, भूखे मरते रहे, उनके श्रीवास्तव-सक्सेना, सुनार-लुहार, धोबी-तेली, चमार. बच्चे बिलखते रहे, औरतें सिसकतीं रहीं और जो भनी आदि हजारों उपजातियोंको लेकर संघर्ष होने ठाटसे नौकरी करते रहे, क्लबोंमें पीते-नाचते रहे, लगे हैं । भील-कोल, द्राविड़-आदिवासी और अछूत- खजाने भरते रहे, वे ही आज हमको कर्तव्यका बोध समस्या अभी हल हो नहीं पा रही है कि यह जाति- करानेमें गर्वका अनुभव कर रहे हैं । मालूम होता है मदका विषधर और फन फैलाकर खड़ा होगया है। सारी भूखी बिल्लियाँ भगतन बन गई हैं। हम उन मोहन (गान्धी) की अनुपस्थितिमें इस कालीदहमें सब सज्जनोंको भी जानते हैं जो युद्ध में अंग्रेजोंको कूदकर कौन कालिनागको विष रहित करे, यह सूझ सहायता करते रहे । जर्मन-विजयकी खुशी भी बड़े नहीं पड़ रहा है। यदि शीघ्र इसका विषहरण नहीं ठाटसे मनानेमें पेशपेश रहे। वे ही हवाका रुन किया गया तो सारे भारतमें यह विष फैलते बदलते ही आजाद हिन्द फौजकी सहायताको झोली देर नहीं लगेगी। लेकर निकल पड़े और अपने दूधमुंहे बच्चोंको ___साम्प्रदायिक और धार्मिक उन्माद महात्माजीके इंक़लाब भगतसिंह जिन्दाबाद और पूंजीवाद मुर्दाबादबलिदानसे खुमारी लेते नज़र आरहे हैं, पर बरसाती के नारे लगाते देख फूल उठते हैं। क्योंकि वे जानते हैं हवा पाते ही यह उन्माद यदि फिर उठ खड़ा हुआ तो कि अब इसमें जानको जोखिममें डालनेका प्रभाव न फिर यह राक्षस रामके मारे भी नहीं मरेगा। रहकर जानको मुटियानेका अमर गया है। __ इसके अतिरिक्त भारतमें पाकिस्तानी अङ्कर अब देशभक्ति राजनैतिक अधिकारियोंकी स्थली धीरे-धीरे बढ़ ही रहा है। काश्मीर और हैदराबादका बन गई है । चर्खा- दङ्गली, काँग्रेसी, सोसलिष्ट, समस्या भयावह बनी हुई है । कम्यूनिष्ट घुनके कीड़ों. कम्यूनिष्ट आदि इस अखाड़ेमें लगर बाँधकर उतरे की तरह भारतको जर्जरित कर ही रहे हैं। भ्रष्टाचार हुए हैं। भारतका हित किसमें है, इतना सोचनेका और घूसखोरीका यह हाल है कि मालूम होता है हम इन्हें अवकाश कहाँ ? अपनी पार्टीका हित किसमें है भारतमें न रहकर ठगों-चोरोंके मुल्कमें बस गये हैं। और विरोधी पक्ष किस दावपर पछाड़ा जाय, यही . अब देश-सेवा आत्मशुद्धिका साधन न रहकर चिन्ता इन्हें हरवक्त बनी रहती है। गनीमत है कि स्वार्थ और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओंकी साधक बन १००-५० खरे देशरत्न अभी जीवित हैं और उनके गई है। वे दिन हवा हुए जब देशके लिये त्याग हाथमें शासनकी बागडोर है, वे मन-वचन-कायसे करना और कष्ट सहना नैतिक कर्तव्य समझा जाता भारतकी स्थिति सुधारने में अहर्निश प्रयत्न कर रहे था और देशभक्त कहलाना आत्म प्रतिष्ठाका द्योतक हैं और प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता आदिकी जड़ोंमें . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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