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मुजफ्फरनगर-परिषद् अधिवेशन
( बा० माईदयाल जैन बी०
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परिषद के मुजफ्फरनगर अधिवेशनमें सम्मिलित होनेके प्रश्नने मेरे मनमें डाँवाडोलपन तथा दुविधा पैदा करदी | हृदय और मस्तिष्क में एक द्वन्द्व उत्पन्न होगया । परिषदकी शिथिलता के कारण उसके प्रति उदासीनता होना स्वाभाबिक है । परन्तु स्थापनाकाल से उससे सम्बन्ध होने के कारण उसके प्रति एक मोह सा भी है, कुछ उससे आशाएँ हैं । समस्त बातें सोचकर, मैं १५ मईको प्रातः देहलीसे मुजफ्फरनगर के लिये रवाना होगया ।
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देश जो उत्तम बाल-साहित्य न रखता हो कभी प्रगति नहीं कर सकता । बालकोंके अच्छे-बुरे संस्कारोंपर ही समाजका सारा भविष्य निर्भर रहता है और उन संस्कारोंका प्रधान आधार बाल-साहित्य ही होता है । यदि अपने समाजको उन्नत, जीवित एवं प्रगतिशील बनाना है, उसमें सच्चे जैनत्वकी • भावना भरना है और अपनी धर्म - संस्कृतिको, जा ब्रिश्वके कल्याणमें सविशेषरूपसे सहायक है, अनुराग रखना है तो उत्तम बाल-साहित्य के निर्माण एव प्रसारकी ओर ध्यान देना ही होगा । और उसके लिये यह ‘सन्मति-विद्या-निधि' नीवकी एक ईटका काम दे सकती है । यदि समाजने इस निधिको अपनाया, उसकी तरफसे अच्छा उत्साहवर्द्धक उत्तर मिला और फलतः उत्तम बाल-साहित्य के निर्माणादि की अच्छी सुन्दर योजनाएँ सम्पन्न और सफल होगई तो इससे मैं अपनी उस इच्छा को बहुत अंशोंमें पूरी हुई समभूंगा जिसके अनुसार मैं अपनी दोनों पुत्रियोंको यथेष्टरूपमें शिक्षित करके उन्हें समाजसंवाक लिये अर्पित कर देना चाहता था । वीर सेवामन्दिर, सरसावा -
३१ मई १४-जुगल किशोर मुख्तार
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बी० टी०)
१२ बजे दिनकी सख्त गर्मीमें गाड़ी स्टेशनपर पहुँची । वहाँ स्वयंसेवक और सवारियाँ तैयार थीं। सनातनधर्म-कालेजके विशाल छात्रावास में ठहरने और भोजनका प्रबन्ध था । सभाओंका प्रबन्ध स्थानीय जैन हाई स्कूल की बिल्डिङ्ग और टाउन हाल के मैदान में था ।
मुजफ्फरनगर की जैन बिरादरी के उत्साह, सुप्रबन्ध प्रेमपूर्ण आतिथ्य तथा सुव्यवस्थित पुर-तकुल्लुक भोजन और नाश्ते की जितनी प्रशंसा कीजाय कम हैं । शामको पक्का खाना । प्रबन्ध इतना अच्छा कि किसी सुबह ठंडाई - सहित नाश्ता, फिर कच्चा भोजन और को किसी बातकी जरा भी शिकायत नहीं । भोजनप्रबन्धके बारेमें मैं इतना ही कहूँगा कि हमें कुछ सादगी से काम लेना चाहिए, जिससे हरएक स्थानकी बिरादरी परिषद अधिवेशनको आसानी से बुला सके, या कमसे कम मुनासिब खर्च में ठीक प्रबन्ध होसके ।
पुराने कार्यकर्ताके अतिरिक्त बा० श्रीजयप्रकाशज मुजफ्फरनगरकी बिरादरी में श्रीबलवीरसिंहजी तथा श्रीसुमतिप्रसादजी एडवोकेट, एम० एल० ए० काँग्रेसी कार्यकर्ता दो ऐसे रत्न हैं जिनका जैन समाज - को अधिक उपयोग करना चाहिये । श्रीसुमतिप्रसादजीको तो प्रेरणा करके सामाजिक कार्योंमें भी आगे लाना चाहिए और उन्हें उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सुपुर्द करना चाहिये। मुझे आश्चर्य यही है कि अब तक उनकी सेवाओं का लाभ क्यों नहीं उठाया गया । पर जैन समाज में पुराने कार्यकर्ताओंको उदासीन न होने देने और नये नेता तथा कार्यकर्ता खोजने की लग्न यारा ही किसे है ?
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परिषद में दूर-दूर स्थानोंसे डेढ़ सौ दो सौ के लगभग नए-पुराने नेता तथा कार्यकर्ता आए । उनके
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