Book Title: Anekant 1948 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ विषय-सूची १ समन्तभद्र भारतीके कुछ नमूने ( युक्त्यनुशासन) - [प्र० सम्पादक ४५ ५० २ संजय वेलट्ठिपुत्त और स्याद्वाद - न्या० पं० दरबारीलाल कोठिया ३ रत्नकरण्डके कर्तृत्व विषय में मेरा विचार और निर्णय । - [ प्र० सम्पादक ५६ ४ साहित्य- परिचय और समालोचन ६० (घ) ५ विमल भाई [ - अयोध्याप्रसाद गोयलीय ६४ ६ हिन्दी - गौरव (कविता) - 1 पं० हरिप्रसाद विकसित ६३ ७ सोमनाथका मन्दिर - [ बा० छोटेलाल जैन ६४ ८ अद्भुत बन्धन (कविता) - [पं० अनूप चन्द जैन ७१ श्री भारत जैन महामण्डलका २८ वां वार्षिक अधिवेशन व्यावर ( राजपूताना ) में ता० २७, २८. २६ मार्च सन् १६४८ को श्रीमान् सेठ अमृतलालजी जैन सम्पादक 'जन्मभूमि' बम्बई के सभापतित्व में होगा । इस अधिवेशन में समाज के हितके कई प्रस्तावों पर विचार किया जावेगा । अतएव आपसे निवेदन है कि इस शुभ अवसरपर पधारने की कृपा करें, तथा समाजका हित किन किन बातों में है इसका लेख, तथा निबन्ध व प्रस्ताव वर्धा भेजें । Jain Education International निवेदकचिरञ्जीलाल बड़जात्या सहायकमन्त्री, श्री भारत जैन महामण्डल, वर्धा. प्राचीन मूर्तियां - अलवर शहर में मोहोला जतीकी बगीची में (पूर्जन विहार के समीप) एक महाजनके मकानकी नींव खुदते समय दक्षिणकी ओर जिधर कबरिस्तान है ता० १६ २- ४८ की दस बजे सुबह चार मूर्तियां जमोनसे ६ करनीका फल (कथा कहानी) अयोध्याप्रसाद गोयलीय ७२ १०. क्या सम्यग्दृष्टि अपर्याप्तकालमें स्त्रीवेदी हो सकता है ? - | बा० रतनचन्द जैन मुख्तार ७३ ११ सलका भाग्योदय - पं० के० भुजबली शास्त्री ७५ १२ चतुर्थ वाग्भट्ट और उनकी कृतियां - पं० परमानन्द जैन शास्त्री ७६ १३ महात्मा गांधी के निधनपर शोक प्रस्ताव ८१ १४ गांधी की याद ( कविता ) . - [ मु० फजलुलरहमान जमाली पर १५ सम्पादकीय विचारधारा - [ गोयलीय ८३ ४. ५ फुटकी गहराई में निकलीं। ये जैन प्रतिमा हैं और इनपर स्थानीय जैनसमाजने अपना अधिकार कर लिया है। इन चारों मूर्तियोंमेंसे ३ प्रतिमायें खण्डित हैं जिनमें से एकपर जो लेख है उससे प्रकट होता है कि वह भगवान पार्श्वनाथकी है और वह वीर सं० १३०२ में प्रतिष्ठित की गई थी। शेष दो खंडित मूर्तियों पर कोई चिह्न नहीं हैं इसलिये उनके सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जासकता कि वे कबकी निर्माण की हुई हैं। चौथी प्रतिमा भगवान ऋषभदेवकी २ फुट ऊंची है । इसपर चिह्न स्पष्ट है । यह चौथे कालकी जान पड़ती है। संगमूसाकी बनी हुई है । यह विशाल होने के अलावा बहुत सुन्दर अनुपम चित्ताकर्षक है । इसे देखनेको जैन तथा अजैन दर्शक सहस्रोंकी संख्यार्मे नित्यप्रति आरहे हैं ऐसा अनुमान है कि कबरिस्तान के नीचे कभी प्राचीन जैनमन्दिर था । खुदाईका काम जारी है । स्थानीय जैन समाजने अस्थाई रूप से इन प्रतिमाओंको निकट ही विराजमान कर दिया है । — जैन समाज, अलवर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 52