Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 3
________________ विषय-सूची १. समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने ... पृष्ठ १ १६. विश्ववाणी का जैन संस्कृति अंक .... ""पृष्ठ ४८ २. जैनकला और उसकामहत्त्व-बाबू जयभगवान जैन वकील ३ १७. ग्रंथ-प्रशस्तिसंग्रह और दि. जैनसमाजश्रगरचंद नाहटा ४६ ३. कवि. भगवतीदास और उनकी रचनाएँ-[परमानंद शास्री १३ १८. तत्त्वार्थ सूत्रका अंतः परीक्षण-[पं० फूलचंद शास्त्री ५१ ४. मरुदेवी-स्वप्नावली-4 पन्नालाल जैन साहित्याचार्य १७ १६. हृदय-द्रावक दो चित्र-बा. महावीर प्रसाद जैन ५४ ५. मैं और वीरसेवामन्दिर-जयभगवान जैन वकील २३ २०. भ. महावीर और अहिमा सिद्धान्त दरबारीलाल जैन ५६ ६.० शीतलप्रसाद जी का वियोग-बा,जयभगवानवकील २४/२१. पन्धी से(कविता)-[श्री 'कुसुम' जैन ५८ ७. बन्दी-(कविता)-पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' २५ / २२. तामिल भाषा का जैन साहित्य-प्रो. ए. चक्रवती ५६ ८. महत्व की प्रश्नोत्तरी-[सम्पादक २६ २३. गिग्निगर की चन्द्रगुफा-[प्रो० हीरालाल जैन ६५ ६. मुख्तार साकी वसीयत और वीर सेवामंदिरट्रस्टकीयोजना २७/२४. वरदत्त की नि० भूमि और वरोगनिर्वाण०[ दीपचंदजैन ६६ १०. रिक्शा गाड़ी (कविता) श्रीहरिप्रसाद शर्मा 'अविकमित' ३० २५. पंजाब में उबलब्ध कुछ जैन लेख-[डा बनारसीदास ७१ ११. सच्चे अचोंमे 'दानवीर'-[जुगलकिशोर मुख्तार (चित्रार) २६. श्रीवीरपंचक-(कविता)-[पं० हरनाथ द्विवेदी ७४ १२. बाबा भागीरथजी वर्णी-[ परमानंद शास्त्री . ३१ २७. बलात्कार के समय क्या करे ?-[महात्मा गाँधी ७५ १३. श्रात्मसमर्पण (कहानी)-श्री भगवत्' जैन ३३ २८. यशस्तिलक का मंशोधन-पि० दीपचंद जैन पाएड्या ७६ १४. पराधीन का जीवन ऐमा(कविता)-श्री 'भगवत्'जैन ३७ २६. माहित्य-परिचय और ममालाचन- परमानंदशास्त्री ६५ १५. पउमचरिय और पद्मचारत-श्री नाथूराम 'प्रेमी' ३८ ३०ऐनालालदि जे०मरस्वतीभवनब गई ह०ग्रंथोकी सूची अनेकान्तस गहरा प्रेम श्रीमान बाबू छोटेलालजी जैन रईम कलकत्ता 'अनकान्त' में कितना प्रेम रग्बते हैं, यह बात ममय समयपर अनेकान्तके पाठकों के सामने आती रही है । गत वर्ष आपने १२५) रु० की सहायता भेजकर अनेकान्तक सहायकोंमें अग्रस्थान प्राप्त किया था। पिछले दिनों-फर्वरी मामक अन्तिम मताहम-जब मै कलकत्ता गया और वहाँ मे वापिस चलने लगा तो आपने चूपक्रमे १००) रु० का नोट लाकर मेरे सामने रख दिया। 'यह कैमा ?' मेरे पूछनेपर, आपने फर्माया कि यह अनेकान्तकी सहायताका है। मैने कहा सहायताके तो आप १२५) रु. भेज चुके हैं, क्या स्मरण नही रहा आप बोल 'स्मरण तो मब कुछ है; परन्तु वे रुपये तो पिछले सालकी बाबत दिये थे, इस साल भी तो खर्च के लिये चाहिये, इन्हें दूसरे वर्षकी महायता में जमा कर लीजिये। मै देखकर दंग रह गया । इस कहते हैं अनेकान्तमे गहरा प्रेम, जो बिना मॉगे र बिना किसी प्रेरणाक स्वयं ही पत्रको ज़रूररियातको सम्भकर उसकी ओर सहायताका हाथ बढाया जाता है । इस गाढ प्रेमके लिये बाबू छोटेलालजीका जितना भी आभार माना जाय और उन्हें जितना भी धन्यवाद दिया जाय वह सब थोड़ा है। निःसन्देह ऐसे सच्चे सनके प्रेमियों के बल-बतेपर ही अनेकान्तको इस भारो मॅहगाईके ज़माने में उसी घटाये हए मूल्यपर निकालनेका साहस किया जारहा है। मै आपकी इस प्रेम-परिणति र उदार चित्तवृत्तिका हृदयसे अभिनन्दन करता है । आशा है दृमरे महानुभाव भी अनकान्तके प्रति अपने प्रमका इसी प्रकार परिचय देगे। -जुगलकिशोर मुख्तारPage Navigation
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