Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ अनेकान्त [वर्ष १, किरण १ wwwr ammar भगवान महावीर और उनका समय शुद्धिशक्तयोः परां काष्ठां योऽवाप्य शान्तिमन्दिरः । देशयामास सद्धम्मै महावीरं नमामि तम् ॥ महावीर-परिचय जज्ञे स्त्रोच्चम्थेषु ___ग्रहेषु सौम्येषुशुभलग्ने ॥ नियों के अन्तिम तीर्थकर भगवान् -निर्वाणभक्ति । महावीर विदेह-(विहार-) देशस्थ तेजःपुंज भगवान के गर्भ में आते ही सिद्धार्थ कुण्डपुर के राजा 'सिद्धार्थ'के पुत्र राजा तथा अन्य कुटुम्धीजनोंकी श्रीवृद्धि हुई- उनका B थे औरमाता प्रियकारिणी'के गर्भसे यश, तेज, पराक्रम और वैभव बढ़ा-माताकी प्रतिभा उत्पन्न हुएथे, जिसका दूसरा नाम 'त्रिशला' भीथा और चमक उठी, वह महज ही में अनेक गूढ प्रश्नों का उत्तर जोवैशालीके राजा 'चेटक'की सुपुत्री थी।आपके शुभ दन लगी, और प्रजाजन भी उत्तरोत्तर सुख शान्तिका जन्मसे चैत्र शुक्ला त्रयोदशीकी तिथि पवित्र हुई और अधिक अनुभव करने लगे। इससे जन्मकालमें आपउसे महान उत्सवों के लिये पर्वका सा गौरव प्राप्त हुआ। का सार्थक नाम 'श्रीवईमान' या 'वर्द्धमान' रवखा इस तिथिको जन्मसमय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र था, गया । साथ ही, वीर, महावीर, और सन्मति जैम जिमे कहीं कहीं 'हम्तोत्तरा' (हम्न नक्षत्र है उत्तरमें- नामोकी भी क्रमशः सृष्टि हुई, जो सब आपके उस अनन्तर-जिसके) इस नामसे भी उल्लेखित किया गया समय प्रस्फुटिन तथा उच्छलित होनेवाले गुणों पर ही है, और सौम्य ग्रह अपन उच्चम्थानपर स्थित थे; जैमा एक आधार रखते हैं । कि श्रीपज्यपादाचार्यके निम्न वाक्यमे प्रकट है: ___महावीरके पिता ‘णात' वं के क्षत्रिय थे । 'णात' चैत्र-सितपक्ष फाल्गनि यह प्राकृत भाषाका शब्द है और 'नात' ऐसा दन्त्य शशांकयोगे दिने त्रयोदश्याम् । नकारस भी लिखा जाता है । संस्कृतमें इसका पर्याय * श्वेताम्बर सम्प्रदाय के कुछ ग्रन्थों में क्षत्रियकराड) ऐसा रूप होता है 'ज्ञात' । इसीसे 'चारित्रभक्ति' में श्रीपज्यनामोल्लेख भी मिलता है जो सभवतः कुगरपुर का एक पहिला जान पादाचार्य ने "श्रीमज्ज्ञातकुलेन्दुना" पद के द्वारा पड़ता है। अन्यथा,उसी सम्प्रदाय के दमो ग्रन्थों में कुरा डयानादि महावीर भगवान को 'ज्ञात' वंशका चन्द्रमा लिखा रूप से कुंडपुर का साफ़ उल्लेख पाया जाता है । यथाः- है, और इसीसे महावीर 'णातपुत्त' अथवा 'ज्ञातपुत्र' "हत्थुत्तराहि जामो कुंडग्गाम महावीगे। प्रा०नि०भा० भी कहलाते थे, जिसका बौद्धादि ग्रन्थोंमें भी उल्लेख वह कुराइपुर ही आजकल कुण्डलपुर कहा जाता है। x कुछ श्वतम्बरीय ग्रन्थों में बहन' लिखा है। दखो, गुणाभद्र चार्यकृत महापुरगा का ७४ वां पर्व ।

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