Book Title: Ahimsa Mahavira ki Drushti me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 2
________________ २३ हजार ६०० ८० हजार ६०० हिन्दी: 'गागर में सागर' में प्रकाशित प्रथम बारह संस्करण (जुलाई १९८५ से अद्यतन) तेरहवाँ संस्करण (२६ जनवरी, २००६, गणतंत्र दिवस) १० हजार योग : १लाख १४ हजार २०० अंग्रेजी: तीन संस्करण १० हजार ४०० मराठी: प्रथम संस्करण ५ हजार २०० गुजराती: दो संस्करण ८ हजार २०० महायोग : १ लाख ३८ हजार प्रकाशकीय (तेरहवाँ संस्करण) डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की महत्त्वपूर्ण कृति 'अहिंसा : महावीर की दृष्टि में' पुस्तक का तेरहवाँ संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यह कृति हमारे द्वारा अबतक प्रकाशित उनकी कृतियों से कुछ हटकर है। अबतक प्रकाशित उनकी कृतियाँ स्वयं उनके द्वारा लिखी गई थीं, जबकि यह कृति उनके बहुचर्चित व्याख्यान का सुसम्पादित रूप है। भगवान महावीर के २५सौवें निर्वाण महोत्सव के समय से आरंभ हए इस विषय पर उनके प्रवचन की विशेष माँग जैनसमाज में तो रहती ही है, जैनेतर समाज में भी उक्त प्रवचन को काफी सराहा जाता रहा है। इसप्रकार देश-विदेश में शताधिक बार वे इस विषय पर बोल चुके हैं। जैनधर्म के मूल सिद्धान्त 'अहिंसा' के इस लोकप्रिय व्याख्यान के प्रकाशन की माँग काफी समय से निरन्तर बनी हुई थी। राजस्थान के भूतपूर्व उद्योग व स्वास्थ्य मंत्री स्व.श्री त्रिलोकचन्दजी जैन के विशेष अनुरोध को दृष्टि में रखते हए डॉ. साहब के टेप प्रवचनों के आधार पर इस व्याख्यान को लिपिबद्ध किया गया और तारण-तरण जयन्ती के अवसर पर मई, १९८५ में 'गागर में सागर' पस्तक के अन्तिम प्रवचन के रूप में इसे प्रकाशित किया गया। पश्चात् ३ जुलाई, १९८५ को पुस्तकाकार रूप में इसे १० हजार की संख्या में हिन्दी में प्रथम बार प्रकाशित किया गया। पुस्तक का सर्वत्र स्वागत किया गया। तब से अबतक इसके बारह संस्करण हिन्दी में ८० हजार ६०० की संख्या में प्रकाशित हो चुके हैं और अब १० हजार की संख्या में ये तेरहवाँ संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। विदेशों में भी जहाँ-जहाँ डॉक्टर साहब गए, इस पुस्तक के अंग्रेजी रूपान्तरण की विशेष माँग की गई, फलतः तीन संस्करण १० हजार ४०० की संख्या में अंग्रेजी में और फिर ५ हजार २०० की संख्या में मराठी तथा ८ हजार २०० की संख्या में गुजराती में भी इसे प्रकाशित किया गया। इसप्रकार हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी व गुजराती में भी अबतक १ लाख १४ हजार ४०० की संख्या में इस कृति का पुस्तकाकार में प्रकाशन हो चुका है। इन सभी के नए संस्करण भी अब प्रकाशनाधीन हैं। 'गागर में सागर' पुस्तक के अन्तिम प्रवचन के रूप में समाहित होने से उक्त पुस्तक के माध्यम से भी यह अबतक २३ हजार ६०० की संख्या में पाठकों तक पहुँच चुकी है। यदि दोनों में मिलाकर योग किया जाए तो कुल प्रकाशन १ लाख ३८ हजार का हो जाता है, जो एक रिकार्ड है। मूल्य : स्वयं पढें और कम से कम पाँच मित्रों को पढायें। ॥श्री वीतरागाय नमः॥ स्व. श्री सौभागमलजी पाटनी की स्मृति में रवीन्द्र पाटनी फैमिली चैरिटेबल ट्रस्ट, मुम्बई दिल्ली प्रवासी) फोन : २३८४४४६२ के सहयोग से पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर द्वारा वितरित मुद्रक : जयपुर प्रिंटर्स प्रा. लि. एम.आई. रोड, जयपुर

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