Book Title: Ahimsa Mahavira ki Drushti me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ अहिंसा : महावीर की दृष्टि में किसान भी मरते हैं, मजदूर भी मरते हैं, व्यापारी भी मरते हैं, खेतखलिहान भी बर्बाद होते हैं, कल-कारखाने भी नष्ट होते हैं, बाजार और दुकानें भी तबाह हो जाती हैं। अधिक क्या कहें, आज के इस युद्ध में अहिंसा की बात कहनेवाले हम जैसे पण्डित और साधुजन भी नहीं बचेंगे, मन्दिर-मस्जिद भी साफ हो जायेंगे। आज के युद्ध सर्वविनाशक हो गये हैं। आज हिंसा जितनी भयानक हो गई है, भगवान महावीर की अहिंसा की आवश्यकता भी आज उतनी ही अधिक हो गई है। ___इस स्थिति में भगवान महावीर को आउट ऑफ डेट कहना, अनुपयोगी कहना कहाँ तक उचित है? - यह विचारने की बात है। आज की लड़ाइयाँ बड़ी वीतरागी लड़ाइयाँ हो गयी हैं। पहिले की लड़ाइयों में मारनेवालों को भी पता रहता था कि मैंने किसको मारा है और मरनेवालों को भी पता रहता था कि मुझे कौन मार रहा है; पर आज न मरनेवालों को पता है कि मुझे कौन मार रहा है, न मारने वालों को ही पता है कि मैं किसे मारने जा रहा हूँ। ऊपर से राम बम फेंकता है और नीचे उसी का भाई लक्ष्मण मर जाता है और मन्दिर साफ हो जाता है। ऊपर से रहीम बम फेंकता है और नीचे उसी का भाई करीम मर जाता है और मस्जिद साफ हो जाती है। ऊपर से हरमिन्दरसिंह बम फेंकता है और नीचे उसी का भाई गुरमिन्दरसिंह मर जाता है और गुरुद्वारा साफ हो जाता है। जब कोई किसी पर बम फेंकता है तो यह कोई नहीं कहता कि राम ने रहीम पर बम फेंका है, सभी यही कहते हैं कि अमेरिका ने जापान पर बम फेंका था। तात्पर्य यह है कि बमों की लड़ाई वस्तुतः व्यक्तियों की लड़ाई नहीं, देशों की लड़ाई है। व्यक्तियों की अपेक्षा देशों की लड़ाई अधिक खतरनाक होती है, क्योंकि वह सामूहिक विनाश करती है। पहले की लड़ाइयाँ व्यक्तियों के बीच होती थीं, फिर परिवारों के बीच होने लगीं। उसके बाद जातियाँ लड़ने लगी और आज देश लड़ते हैं। रामायण की लड़ाई दो व्यक्तियों की लड़ाई थी। राम और रावण अहिंसा : महावीर की दृष्टि में दोनों व्यक्ति ही तो थे। रामायण की लड़ाई राम और रावण की लड़ाई ही तो कहलाती है। फिर हम महाभारत के युग में आते हैं। तबतक परिवार लड़ने लगे थे। महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के बीच हुआ था। कौरव और पाण्डव किसी एक व्यक्ति के नाम नहीं, परिवारों के नाम हैं। हम और आगे बढ़े। सन् सैंतालीस में हुए दंगे राम और रहीम के बीच नहीं, हिन्दू-मुस्लिमों के बीच हुए थे। हिन्दू और मुस्लिम दो जातियाँ हैं। सन् १९६५ एवं १९७१ में हुई लड़ाइयाँ श्री लालबहादुर शास्त्री एवं अयूब खाँ और श्रीमती इन्दिरा गाँधी एवं याह्या खाँ के बीच नहीं लड़ी गयी थीं, अपितु ये युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े गये थे। ____ भाई ! जब व्यक्ति लड़ते हैं तो व्यक्ति बर्बाद होते हैं, जब परिवार लड़ते हैं तो परिवार बर्बाद होते हैं, जब जातियाँ लड़ती हैं तो जातियाँ बर्बाद होती हैं और जब देश लड़ते हैं तो देश बर्बाद होते हैं। देश का अर्थ मात्र आदमी नहीं होता है। देश में आदमियों के साथ पशु-पक्षी भी होते हैं, खेत-खलियान भी होते हैं, कल-कारखाने भी होते हैं और मन्दिर-मस्जिद भी होते हैं। देश बर्बाद होने का अर्थ है इन सभी का बर्बाद होना, विनाश होना । भाई, जहाँ अणुबम गिरता है, वहाँ आदमी के साथ-साथ पशु-पक्षी भी मरते हैं, कीड़े-मकोड़े भी मरते हैं, पेड़-पौधे भी नष्ट होते हैं; कहते तो यहाँ तक हैं कि जहाँ अणुबम गिरता है, वहाँ की जमीन भी ऐसी हो जाती है कि हजार वर्ष तक घास भी न उगे। भाई ! आज हिंसा का भी राष्ट्रीयकरण हो गया है। वह भी व्यक्तिगत नहीं रही है। विनाश की इस प्रलयंकारी बाढ़ को रोकने में यदि कोई समर्थ है तो वह एकमात्र भगवान महावीर की अहिंसा ही है; अतः मैं कहता हूँ कि भगवान महावीर की अहिंसा की जितनी आवश्यकता आज है, उतनी भगवान महावीर के जमाने में भी नहीं थी; इसलिए कहा जा सकता है कि भगवान महावीर आज भी अप टू डेट हैं।

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