Book Title: Ahimsa Mahavira ki Drushti me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ अहिंसा : महावीर की दृष्टि में उनके पास; पर भाईसाहब ! भौतिकरूप से सब-कुछ देनेवालों को भी हम कहाँ याद रखते हैं ? अभी बताया था न कि जो माँ-बाप हमें अपना सर्वस्व दे जाते हैं, हम उन्हें भी कितना याद रख पाते हैं ? पर हम महावीर को याद तो करते ही हैं, लाखों लोग उनसे ध्यान में विचरण करने की प्रार्थना तो करते ही हैं। ऐसा क्या दिया था उन्होंने हमें? क्योंकि यह स्वार्थी जगत बिना प्रयोजन तो किसी को कभी याद करता ही नहीं है। उन्होंने हमें कुछ ऐसे सिद्धान्त दिये थे, ऐसा मार्ग बताया था कि जिन्हें हम अपना लेवें, जिस पर हम चलें तो आज भी सुख-शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि भगवान महावीर ने जो रास्ता पच्चीस सौ वर्ष पहले बताया था, हो सकता है कि वह उस युग में किसी काम का रहा हो, पर आज दुनिया बहुत बदल गई है; कहाँ वह बैलगाड़ी का जमाना और कहाँ यह राकेटी दुनिया ? पच्चीस सौ वर्ष पुरानी बातें आज किस काम की? अतः वे लोग कहते हैं कि आज महावीर आउट ऑफ डेट हो गये हैं। ऐसे लोगों से मैं कहना चाहता हूँ कि महावीर आउट ऑफ डेट नहीं, आज भी एकदम अप टू डेट हैं। मेरी यह बात शायद उन लोगों को पसन्द न आये. जो ऐसे कपड़े पहिनकर, ऐसे बाल कटाकर कि दूर से देखने पर पता ही न चले कि लड़का है या लड़की, अपने को अप टू डेट समझते हैं; पर ध्यान रहे, कोई व्यक्ति इस से अप टू डेट नहीं होता, अपितु अपने विचारों से होता है। जो व्यक्ति ड्रेस से अप टू डेट बनेगा, उसे एक न एक दिन आउट ऑफ डेट होना ही होगा; क्योंकि ड्रेस सदा एक-सी नहीं रहती, बदलती ही रहती है। मेरे पिताजी पगड़ी बाँधा करते थे। जब वे दर्पण के सामने बैठकर पगडी बाँधते थे तो एक घण्टे से कम नहीं लगता था। इसीप्रकार जब पगड़ी बाँधकर बाजार से निकलते थे तो अपने को कम अप टू डेट नहीं समझते थे, पर हमने पगड़ी छोड़ दी और टोपी लगाकर अपने को अप टू डेट समझने लगे। हमारे बच्चों ने टोपी भी फेंक दी और अप टू डेट हो गये, हमें आउट ऑफ डेट कर दिया। अहिंसा : महावीर की दृष्टि में भाई ! जो व्यक्ति ड्रेस से अप टू डेट बनेगा, उसे एक न एक दिन आउट ऑफ डेट होना ही होगा। और कोई नहीं, स्वयं के बच्चे ही उसे आउट ऑफ डेट कर देंगे। जब लोग पगड़ी बाँधते थे तो लोग पगड़ियाँ उछाला करते थे, जब टोपियाँ लगाने लगे तो टोपियाँ उछलने लगीं, पर आज न लोग पगड़ी बाँधते हैं, न टोपी लगाते हैं तो लोगों के बाल ही उड़ने लगे। आपने पुरुष तो गंजे बहुत देखे होंगे, पर महिला एक भी गंजी नहीं देखी होगी। क्या आप जानते हैं कि पुरुष ही गंजे क्यों होते हैं, महिलायें क्यों नहीं? महिलाओं के सिर पर उड़ने के लिए साड़ी का पल्लू सदा विद्यमान रहता है, पर पुरुषों के सिर पर उड़ने के लिए कोई बाहरी वस्तु देखने में नहीं आती, अतः उनके बाल ही उड़ने लगते हैं। अभी तो बाल ही उड़े हैं, जब बाल भी न रहेंगे तो क्या उड़ेगा? - यह समझने की बात है; अतः समझदारी इसी में है कि हमें उड़ने के लिए कोई एक बाहरी वस्तु सिर पर अवश्य रखनी चाहिए। जो भी हो, यह बात तो बीच में यों ही आ गयी थी। अपनी बात तो यह चल रही है कि कोई भी व्यक्ति ड्रेस से अप टू डेट नहीं होता, अपितु अपने विचारों से अप टू डेट होता है। यदि ड्रेस से अप टू डेट मानें, तब भी भगवान महावीर आउट ऑफ डेट नहीं हो सकते; क्योंकि वे विदाउट ड्रेस थे। ____ मैं धोती-कुर्ता पहिनता हूँ और आप लोग सूट-पैण्ट; पर यह अन्तर तो मात्र ड्रेस का है, ड्रेस के भीतर विद्यमान शरीर तो सबका एक-सा ही है। इस पर कोई कह सकता है कि शरीर में भी तो अन्तर देखने में आता है कि कोई गोरा है, कोई काला; कोई मोटा है, कोई पतला; कोई लम्बा है, कोई ठिगना। हाँ, शरीर में भी अन्तर है; पर शरीर के भीतर विद्यमान भगवान आत्मा तो सबका एक जैसा ही है। भाई ! जितना भेद दिखाई देता है; अन्तर दिखाई देता है, वह सब ऊपर-ऊपर का ही है; अन्तर की गहराई में जाकर देखें तो एक महान समानता के दर्शन होंगे।

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