Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 4
________________ (४) वैमी जहांतक बनी सावधानता रक्खी गई है और शार के अनभिज्ञ लोगों को लौकिक दृष्टान्त युक्तियाँ देकर सहज में समझाने का प्रयत्न भी किया गया है, जिनसे कि वे लोग अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण न करें। प्रसङ्गानुरोध से मुझे कहना पडता है कि-गुजरातदशक छोड़कर मध्य हिन्दुस्थान, बङ्गाल, मगध और मिथिला दिदेशो में में जब विचरने लगा नव उन उन देशों में प्रचलित घोर हिंसाको देखकर मेरे अन्तःकरण में जी जी विचार उत्पन्न हुए उनका दिग्दनर्श भी अगर यहा पर कराया जाय तो एक दूसरा ही निवन्ध तैयार हो जाय, किन्तु उन दूसरी बातों को छोडकर सब धर्मवालो की माता · अहिंमा ' महादेवी की आशातना करने वाले.. धर्म के निमित से हिंमा करनेवाले, देविओं के सन्मुख उनके पुत्रों को मारने वाले क्रूरात्माओं पर उत्पन्न हुई भावदया के कारण, ' यावबुद्धिबलोदयम इस निय. मानमार मैने : अहिंसादिर्शन ' नामक ग्रन्थ लिखकर भव्यपुरुषों के सम्मुख उपस्थित किया है। इस निबन्ध में केवल जैन शास्त्रों के ही नहीं, बल्कि विशेष करके महाभारत, पुराण, मनुस्मृति और गीता आदि हिन्दुधर्मवालों के माननीय ग्रन्थों के दो प्रमाण देकर ' अहिंसा ' की पुष्टि की गई है । ___ अन्त में मेरा यह करुणाभाव संपूर्ण जगत् के समस्त प्रदेशों में निवास करे, इतनाही कहकर में इस छोटीसी प्रस्तावना को समाप्त करता है। ग्रंथकर्ता ।

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