Book Title: Agamik Gaccha Prachin Trustutik Gaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 12
________________ २५२ डॉ. शिव प्रसाद जैसा कि पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है, अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि से आगमिकगच्छ की दो शाखायें अस्तित्व में आयीं। अमरसिंहसूरि की शिष्यसंतति आगे चलकर धंधूकीया शाखा के नाम से जानी गयी। उसी प्रकार सोमतिलकसूरि की शिष्य परम्परा विडालंबीयाशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई। _मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में अभयसिंहसूरि के पश्चात् सोमतिलकसूरि से मुनिरत्नसूरि तक ७ आचार्यों का क्रम इस प्रकार मिलता है सोमतिलकसूरि सोमचंद्रसूरि गुणरत्नसूरि मुनिसिंहसूरि शीलरत्नसूरि आनन्दप्रभसूरि मुनिरत्नसूरि साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इस पट्टावली के गुणरत्नसूरि और मुनिरत्नसूरि के अन्य शिष्यों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त होती है। गजसिंहकुमाररास' ( रचनाकाल वि० सं० १५१३ ) की प्रशस्ति में रचनाकार देवरत्नसूरि ने अपने गुरु गुणरत्नसूरि का ससम्मान उल्लेख किया है। इसी प्रकार मलयसुन्दरीरास ( रचनाकाल वि० सं० १५४३ ) और कथाबत्तीसी ( रचनाकाल वि० सं० १५५७ ) की प्रशस्तियों में रचनाकार ने अपने गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है मुनिसिंहसूरि मतिसागरसूरि उदयधर्मसूरि [रचनाकार आगमिकगच्छीय उदयधर्मसूरि (द्वितीय) द्वारा रचित धर्मकल्पद्रुम की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपने गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है-- १. मिश्र, शितिकंठ-हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास [ भाग-१ ] मरु-गूर्जर ( वाराणसी १९९० ई०) पु० ४०० २. मिश्र, शितिकंठ, पूर्वोक्त, पृ० ३३४ और आगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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