Book Title: Agamik Gaccha Prachin Trustutik Gaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 44
________________ Jain Education International 215 1643 284 216. 1667 फाल्गुन सुदि 5 संयमरत्नसूरि शांतिनाथ की धातु की संभवनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, गुरुवार के पट्टधर प्रतिमा का लेख पादरा भाग-२, लेखांक 11 कुलवर्धनसूरि वैशाख वदि 7 शांतिनाथ की प्रतिमा शांतिनाथ जिनालय,' वही, भाग-२, का लेख खंभात लेखांक 610 वैशाख वदि 7 कुलवर्धनसूरि पार्श्वनाथ की शीतलनाथ जिनालय, वही, भाग-२ प्रतिमा का लेख कुंभारवाडो, खंभात लेखांक 649 ज्येष्ठ सुदि 6 कुलवर्धनसूरि अजितनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग-१ गुरुवार प्रतिमा का लेख कनासानो पाडो, पाटन लेखांक 361 217. 1667 218. 1683 For Private & Personal Use Only डॉ० शिव प्रसाद इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आगमिकगच्छ १३वीं शती के रखने बल्कि उसमें नई स्फति पैदा करने में श्वेताम्बर जैन / प्रारम्भ अथवा मध्य में अस्तित्त्व में आया और १७वीं शती के आचार्यों ने अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अन्त तक विद्यमान रहा। लगभग 400 वर्षों के लम्बे काल में विक्रम सम्वत् की १७वीं शताब्दी के पश्चात् इस गच्छ से इस गच्छ में कई प्रभावक आचार्य हये, जिन्होंने अपनी साहित्यो सम्बद्ध प्रमाणों का अभाव है। अतः यह कहा जा सकता है कि पासना और नूतन जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना, प्राचीन १७वीं शती के पश्चात् इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्त्व समाप्त हो जिनालयों के उद्धार आदि द्वारा पश्चिमी भारत (गुजरातकाठियावाड़ और राजस्थान ) में श्वेताम्बर श्रमणसंघ को गया होगा और इसके अनुयायी श्रमण एवं श्रावकादि अन्य जीवन्त बनाये रखने में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई / यह गच्छों में सम्मिलित हो गये होंगे। भी स्मरणीय है कि यह वही काल है, जब सम्पूर्ण उत्तर भारत वर्तमान समय में भी श्वेताम्बर श्रमण संघ की एक शाखा पर मुस्लिम शासन स्थापित हो चुका था, हिन्दुओं के साथ-साथ त्रिस्तुतिकमत अपरनाम बृहद्सौधर्मतपागच्छ के नाम से जानी बौद्धों और जैनों के भी मन्दिर-मठ समान रूप से तोड़े जाते रहे, जाती है, किन्तु इस शाखा के मुनिजन स्वयं को तपागच्छ से ऐसे समय में श्वेताम्बर श्रमण संघ को न केवल जीवन्त बनाये उद्भूत तथा उसकी एक शाखा के रूप में स्वीकार करते हैं। www.jainelibrary.org

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