Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 11
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 257
________________ गणिं गणहरं गणावच्छेअयं जं वा पुरओ काउं विहरइ-'इच्छामि णं * भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, ते य से वियरिज्जा एवं से / कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा परि-नि सित्तए वा, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। से किमाहु भंते ! आयरिया पच्चवायं जाणंति // सू. 46 // एवं विहारभूमि वा है।

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