Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 11
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 256
________________ कल्पसूत्र // 124 // हरतणुए। जे छउमत्थेणं निग्गंथेणं वा निग्गंथीए वा आभिक्खणं / अभिक्खणं जाव पडिलेहियब्वे भवइ, से तं सिणेहसुहुमे ८॥सू. 45 // वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा गाहावइकुलं / भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवित्तिं / वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेअयं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छिउं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं / / // 124||

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