Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 11
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ कल्पसूत्र // 127 // मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो वा, ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं / - मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। से किमाहु भंते! ?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥सू.५०॥ वासा // 127 //
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