Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Author(s): Mehta Mohanlal Damodar Publisher: Mehta Mohanlal Damodar View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. घणारा धार्मिक संप्रदायामां अनुक काळ व्यतित थतां एक एवो समय आत्री लागे छे के, तेना अनुयायीओनुं स्वधर्मना मूळ उद्देश प्रति दुर्लक्ष्य थाय छे अने तेओ धर्मना मात्र बाह्याचारनेज वळगी रहे छे, एथी परिणाम ए आवे छे के मनुष्य जीवन उपर धर्मनी जे उमदा असर रहेवी जोइए ते रहेती नयी; आवो समय आवे छे त्यारे केळवायेल वर्ग धर्मना ए पडछायाने तत्व तरीके स्वीकारवा तरफ उदासीनता धारण करे छे, अने अशिक्षित वर्ग जे मार्गे जतो होय ते मार्गे तेने जबा दे छे, एवे वखते सामान्य जन मंडळ धर्मना अमुक आचार अने क्रियाने वळगी रहे छे खरा, परंतु परापूर्वथी चालता आंवला रीवाज अने रुढीने लइनेज तेओ तेम करे छे; जिंदगीना सत्यमार्ग-दर्शक भोमिया तरीके, तत्रज्ञानने अभावे, धर्मनो तओ उपयोग करी शकता नथी. arrar धर्म ने पंथी अत्यारे आवी स्थिति जोवामां आवे छे, जैन धर्मनी सांप्रत स्थिति पण ए प्रवाहना वेगने मळती छे, जैन मावापन पेटे जन्मेला केटलाक केळवाला युवा जडवादना संस्कारीने लइ, स्ववने तत्वने बदले पडछायारूप माने छे, तेओ पोते एम समज छे अने अन्यने एम समजावे छे के मनुष्य जीवनमां धर्म जेवी संस्थानी कशी जरुर नयी, एटलुंज नहिपण धर्म व्हेमो अने न मानी शकाय एवी कल्पनाओतुं संग्रहस्थान छे अने तेथी ते नुकशानकारक छे, अने आपणने आगळ वधता अटकावामां ते कंटक समान छे, अर्थात धर्मने तेओ एक दर्दरुप माने छे अने ए दर्दथी मुक्त थवाने पोते प्रयत्न करे छे अने 'अन्यने प्रयत्नशील थवा उपदेश करे छे. heater वर्गने धर्म तरफ आओ अगगमो शाथी उत्पन्न थयो हो अने ए गैर समज केस दूर थाय ए प्रश्नो अति महत्वना छे. . धर्मने नामे मात्र बाह्याचार पाळनारां ने अमुक अमुक क्रिया करनाएं मनुष्योनां विचार, वाणी अन कर्ममां परस्पर विरुद्धता मात्र जोइनेज तेओ एम मानवाने उतावळ करे छे के धर्म मनुष्यने उन्नतिना मार्गे चढाववाने अशक्त छे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 00000000 00000000000000 www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 352