Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 7
________________ रहेता, तेनो अमल तुरतमां थयेलो जोया इच्छे छे. पण सूत्रोना भाषान्तरथी श्रा क वर्ग माहित थाय ए केटलाक शिथिलाचारीने भयरुप लागे छे अने अनेक विघ्नो नांखे छे. वर्तमान समय आवी अडचणो तरफ लक्ष आपे एम नथी... देशवासी प्रसिद्ध बाबुए घणां सूत्रो छपायां छे. जाणीता जैन बुकसेलर श्रावक भीमसीह माणेके ते परथी केटलांक सूत्रो छपाव्यां छे. पण तेमां लंबाण विशेष छ अने भाषा वर्तमान समयने अनुसरती सरल नथी. स्थानकवासी विद्वान् डोक्टर जीवराज घेला| भाइ, एल. एम. एन्ड एस. एमणे जर्मनीना प्रो. हर्मन जेकोबीनी सलाह लइ श्री दशवकालिक अने श्री उत्तराध्ययनजी सूत्रोन भाषान्तर प्रसिद्ध करेल छे अने हजी बीजां सूत्रो मारे तेवो स्तुत्य प्रयास चालुज राख्योछे. देरावासी प्रो.रवजी देवराज तथामोरबीना .स्था. जैन स्कोलरोए मळी उपयोगी प्रथम अंग श्री आचारांगजी सूत्रनुं भाषान्तर प्रसिद्ध करेल तेनी प्रथमावृत्तिनी तमाम नकलो खलास थतां वीजी आवृत्ति छपाववा पडी. आ बधी बीनाथी सावीत थाय छे के अनुयायीओ आ अगत्यता स्वीकारी उत्तेजन आपवा तैयारछे. आवी आशाए अमारो उत्साह टकावी खख्यो छ. श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रमा पण परम उपकारी भगवान आवा उपयोमी सूत्रोना अर्थो समजी शीखवानुं खास फरमान करी गया छे. उक्त सूत्रनुं भाषान्तर करवामां कलकत्ता आवृत्ति अने ते उपर श्री लक्ष्मीवल्लभनी टीका सस्कृतमा करायेली, भाव विजयी अने शान्त वैताली टीकाओ तथा प्रो. हर्मन जेकोबीकृत अंग्रेजी भाषान्तर उपर खास आधार राखवामां आवेलो छे. ए बन्नेनी वच्चे ज्या ज्यां गाथा अथवा अर्थमां तफावत जणायो त्या त्या विद्वान साधु मुनिराजनी अने अन्य आवृत्तिओनो आश्रय लइ शक्ति अनुसार स्पष्टीकरण कर्यु छे, अने पृष्ठने तळीये ते संबंधे खुलासो कर्योछे. उपरांत अल्पज्ञान ने अवकाश मल्यो त्यां सुधी फुटनोटमां समज आपेली छे. मूल पाठ तमाम प्रतोनो मळतो नथी. इस्व दीर्घ दोष थवानां आ सबळ कारणो छे. शा. १५१२ नी | माळवानी प्रत तथा वीजी हस्त लीखित प्रतो साथे मूळ पाठ मेळववा प्रयास कयों छे छतां अमने भीति छे के आ पुस्तक ते दोपथी मुक्त रही शक्यु नथी. Jain Education intentional For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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