Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar
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आणा निदे स करे गुरूग मणुवधाय कारए। पडिगीए असंबु हे अधिगीएलि बुच ॥३॥ जहा सुगी पुइ कन्नी निकसिज्जई | उ.अ.
| सव्वसो । एवं दुस्सील पडिणीए मुहरी निकतिज्जई ॥४॥ कग कुंडगंचइत्त,णं विठं भुजइ सूयो । एवं सिलं चइताणं
दुस्सीले रमई मिए ॥५॥ सुणिया भावं साणस्स मूयरस्त नरस्सय । विणए ठविज्ज अप्पाणं इक्षुत्तो हिय मप्पणो ॥६॥ तम्हा विणय मेसेज्जा सीलं पडि लभेजओ । बुद्ध पुत्त नियागठी ननिक्कसिज्जई कन्हुइ ॥७॥
गुरुनी आज्ञा प्रमाणे न वर्ते, गुरुथी दूर बेसी रहे, गुरुना काम न करे, गुरुनां प्रत्यनीक वरी। सरखो होय अने तत्वनो अजाण होय ते शिष्य अविनित' कहेवाय. [३]. जेम कोहेलारुधिर बहेता कानवाळी कुतरीने ज्यां जाय त्यांची काढी मूकवामां आवे छे, तेममूंडा आ
चारवाळा, गुरुना प्रत्यनीक बेरी सरखा, अने असम्बन्ध भाषि- शिष्यने [गच्छथी] काढी मूकवो जोइए. [४]. जेम सूकर | Al[डुक्कर] अन्न कुंड छांडीने विष्टा भोगवे छे, तेम पशु जेवो अविनित शिष्य भला आचार छांडीने मुंडा आचाग्ने विषे प्रवर्ते छे.
[५]. श्वान अने सूकरनी सार्थ अविनित मनुष्यनी सरखामणीनु आ दृष्टांत सांभळीने, जे कोइ पोताना आत्मानुं हित इच्छतो होय । तेणे विनयने विषे दृढ थर्बु जाइए. [६. तेटला माटे तुं विनय कर जेथी तुं भलो आचार पामीश. मोक्षार्थी४ बुद्धपुत्र। [विनित शिष्य ने गच्छादिकथी कोइ काढी मूकतुं नथी. [७].
१. अविनित अर्थ समजाववा टीकाकारे कूलवालूनुं द्रष्टांत आपेलु छे. २. पडिण,ये=In su bordinate. 3. Talkative =वातोडीओ. ४. 'नियागही' हमेशा 'मोक्षार्थी 'ना भावार्थमां वपराय छे, तेथी प्रोफेसर जेकोबी ते माटे in Tho desires liberation लखे छे, परन्तु अहि तथा २०मी गाथामा 'नियोग' तेना सामान्य अर्थ"आज्ञा order " 181
मां वपरायो जणाय छे, तेथी 'मोक्षार्थी' ने बदले 'आज्ञार्थी' [He who waits for an order] लइए तो पण बंध बेसतुं । थशे. ५. अहिं बुद्ध, आचार्य-गुरुना अर्थमां छे. युद्ध पुत्र एटले गुरु पुत्र-शिष्य.
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