Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 15
________________ उ.अ. वरं मे अप्पा दतो संजमेण तवेणय । माहं परेहिं दम्मतो बंधणेहि वहेहिय ॥१६॥ पडिणीयंच बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा । आवीवा जइवा रहसे नेवकुज्जा कयाइवि॥१७॥न पख्खओन पुरओ नेव किच्चाण पिठ्ठओ।न मुंजे ऊरणा ऊरु सयणे नो पडिस्सुणे ॥१८॥ नेव पल्हथ्थियं कुज्जा पख्खपिंडंव संजए। पाए पसारिए वावि न चिठे गुरुणंतिए॥१९॥आयरिएहिं वा हित्तो तुसिणीओ न कयाइवि । पसाय पेही नियागठी उवचिठे गुरु सया ॥२०॥ बीजाओने हाथे रसी (रांढवा)थी बंधावा करतां अने लाकडीना मारथी जीतावा करतां [सत्तरे भेदे] संयम अने [बारे भेदे] तपस्याथी हुँ ज मारा आत्माने दमुं [जितेन्द्रिय थाउं] तो वधारे सारुं।. (१६). वचने करीने अथवा कार्ये करीने जाहेरमां अथवा एकान्तमा *गुरु समीपे शत्रुभाव दर्शाववो नहि. (१७). गुरुनी साथे एक पंक्तिए बेसवू नहि; गुरुनी अगाडी तेमज पूंठे पण बेसबुं नाहि; पोताना साथळे करीने गुरुना साथळने संघट्टो करवो नहि ( साथळ घसाय एम अडोअड न बसवं ); अने पयारीमा बेठां बेठां गुरुने उत्तर आफ्नो नहि. [१८]. सुशिष्ये गुरुनी सामे वस्त्रवति हाथ पगनी पलांठी वाळीने अथवा पग लांबा करीने बेसवं नहिअथवा तो गुरुनी छेक पासे उभा रहेवू नहि. [१९]. गुरु बोलावे त्यारे अणबोल्या रहेवं नहि, पण मारा उपर गुरुए कृपा करी एम समजवू. मोक्षार्थी मुशिष्ये सदाकाळ गुरुनी विनय पूर्वक सेवा करवी. (२०). 0000०००००००००० ००००००००००००००. that I should subdue my self by self-control and penance, than be subdued by others with fetters and corporal punishment."सर्व धर्मोमां आ सिद्धान्त प्रतिपादन छे अने पुष्टिने माटे जोइए तेटला प्रमाणो मळी शके एम छ. अत्र विशेष विवेचनने अवकाश नथी. ____ * 'बुद्धाणं' अहिं गुरु Superiorsना अर्थमां वपरायेल छे. Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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